अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गुलाल लगाएंगे।।
काले धन वालों को काला, और सभी को सतरंगी।
पिचकारी की तेज धार से, बदन सभी का भिगाएंगे।।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
दुर्जन सब सुख भोग रहे, सज्जन अभाव में जीते हैं।
जितने भ्रष्ट दिखें होली में, सब को सबक सिखाएंगे।।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
घूसखोर, भ्रष्टाचारी, कुछ , बलात्कारी, बेईमान हुए।
होली में कोई बच न पाए, गधे में सब को घुमाएंगे।।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
सज्जन की आबादी कम है, देश में दुर्जन ज्यादा हैं।
दिल्ली की ऐसी होली में, गधे भी कम पड़ जाएंगे॥
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गले लगाएंगे।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे॥
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अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
विवेकानंदनगर, धमतरी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय भाई,
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया और रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
काश ऐसी होली हर महानगर में होती
आदरणीय नीरज भाई,
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ॥
काश ऐसी होली हर महानगर में होती
आदरणीय लक्ष्मण् भाई,
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय राजेशकुमारीजी,
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
गधे भी कम पड़ जाएंगे ......तो...... हर गधे में तीन बिठायेंगे
पुनः हृदय से धन्यवाद , आभार
छोटे भाई गिरिराज्,
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद
सुन्दर सामयिक और सार्थक सन्देश देती गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
आदरणीय जितेन्द्र भाई,
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ॥
हहाहाहा ----क्या ऐसा कर पायेंगे ?कहाँ कहाँ से ढूंढ कर लायेंगे ,गधे कम पड़ जायेंगे
आहूत ही सुन्दर होली के हुड़दंग का इरादा है .. बहुत खूब.
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