For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़े साहब की गाँधी जयंती (कविता)- अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

बड़े साहब थे बड़े मूड में, भृत्य भेजकर मुझे बुलाये।                                                                                               

छुट्टी का दिन व्यर्थ न जाये, आओ इसे रंगीन बनायें॥                                                                                                          

आज के दिन जो मिले नहीं, उस चीज का नाम बताये।                                                                                            

और बोले कहीं से जुगाड़ करो, फिर मंद- मंद मुस्काये॥                                                                                                          

नशा से नफरत करता हूँ ,पर ऊँची चीज मैं पीता हूँ।                                                                                              

काजू  , भुजिया -  सेव ,   पकौड़े, साथ में लेते आयें॥                                                                                                                   

हींग लगे, न लगे फिटकरी, रंग भी चोखा हो जाये।                                                                                                    

साथ रखो कोई ठेकेदार, पैसे की  बचत हो जाये॥                                                                                                                  

शेरो- शायरी चलती रहे, शायर दो चार पकड़ लाओ।                                                                                                

फड़कदार कोई गज़ल सुनो, पीने का मज़ा आ जाये॥                                                                                                            

देश भक्त थे शास्त्री जी, बड़े काबिल और बहादुर थे।                                                                                                

“लाल ” को भी श्रद्धाजंलि देकर, लाल रंग छलकायें॥

और अंत में – ( कविता सार )                                                                                                                               *****************************

न देखो बुरा, न सुनो बुरा, न बोलो ऐसे, लगे बुरा।                                                                                                  

शायद चौथा बंदर कहता, पियें बुरा न पिलायें बुरा॥                                                                                  

***************************************************

  - अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी (छत्तीसगढ़)                                                                                                    ( मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 10:38am

बड़ा ही सटीक व्यंग्य किया है इस रचना में आदरणीय श्री  अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी , आज कदाचार इस हद तक बढ़ गया है की ज़मीर जैसी चीज़ लुप्त प्रजाति का गुण हो गया है  । और गलती को भी गर्व से गा बजा के निभाया जा रहा है उसका , ग्लोरिफिकेशन करके । अफ़सोस होता है बापू , भगत जैसी विभूतियों ने इसी दिन के लिए देश आज़ाद कराया था ? करारा आक्षेप करती इस रचना के  हार्दिक साधुवाद , बधाई !!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 3, 2013 at 10:25pm

आ,  गणेशजी बागी ; अरुण शर्मा अनंतजी ; सुशील जोशीजी ; सुरेंद्र कुमार शुक्ला भ्रमरजी ; केवल प्रसाद्जी ; विजय मिश्रजी ; आशुतोष मिश्राजी ; डी पी माथुरजी ; बृजेश नीरज जी ; आ. गीतिका वेदिका जी  एवं गिरिराज भाई .........

आप सब की प्रशंसा और हार्दिक बधाई से मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है। सामयिक विषय * बड़े साहब की गाँधी जयंती * पर मेरा प्रयास सफल हुआ । आप सभी का हार्दिक धन्यवाद और आभार ॥ 

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 7:00pm

बहुत ही सुन्दर व्यंग किया है आपने इसके लिए आप बधाई के पात्र ह

Comment by D P Mathur on October 3, 2013 at 5:35pm
आदरणीय अखिलेश सर नमस्कार, सरकारी अफसरों की मनोदशा पर सुन्दर व्यंग किया गया है उन्हें बस अवकाश से मतलब होता है बस, आपको बधाई ।
Comment by वेदिका on October 3, 2013 at 3:38pm

वाह !!

सरकारी लोगों की सरकारी छुट्टी !!

गंभीर व्यंग!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2013 at 2:51pm

आनंदित कर देने वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई ....छत्तीस गढ़ की मिट्टी से जुदा हूँ और आप भी वहीं से जुड़ें हैं जानकार प्रसन्नता हुई ..सादर 

Comment by विजय मिश्र on October 3, 2013 at 2:38pm
चरित्रहीन और विवेकहीन अफसरशाही के घृणित किन्तु व्यवहारिक पक्ष को कतिपय अत्यन्त व्यवस्थित ढंग से रखा आपने ,इनके चरित्र इससे भी एक कदम आगे लोक स्मिता हनन तक पहुँचने से नहीं हिचकते हैं ,जिसकी आपने अपनी कविता में मर्यादित वर्जना कियी है अखिलेशजी . बहुत सुन्दर ,भाई बधाई .
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 3, 2013 at 8:33am

भार्इ जी! एक गंभीर एवं शसक्त रचना। आपको हृदयतल से हार्दिक बधाइयां।  सादर,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 2, 2013 at 11:12pm

प्रिय अखिलेश जी आज के काम काज की अफसरनामा की कलई खोलती ..व्यंग्य कसती नशे का विरोध करती अच्छी रचना
आभार
भ्रमर ५

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:33pm

वाह... बहुत खूब आदरणीय अखिलेश जी.... क्या सुंदर प्रस्तुति है आज के दिन... बधाई...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
1 hour ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
16 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
16 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service