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श्वेत वसना दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।

तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।

 

चाँद ने जब बुर्ज से, झाँका भुवन की झील में,

झिलमिलाती साथ आई, सर्द सजनी चंद्रिका।

 

पात झूमें, पुष्प हरषे, रात ने अंगड़ाई ली,

पाश में ले हर कली को, चूम चहकी चंद्रिका।

 

घन घनेरे, आसमाँ से, छोड़ डेरा छिप गए,

जब धरा पर शीत बदली, बन के बरसी चंद्रिका।

 

पर्वतों से, वादियों से, पाख भर मिलती रही,

सागरों की हर लहर से, खूब खेली चंद्रिका।

 

प्राणियों में प्रेम बोया, हर किरण से सींचकर,

प्रेमियों सँग गुनगुनाई, रात रानी चंद्रिका।

 

हर कलम की बन ग़ज़ल, शब भर सफर करती रही,

शबनमी प्रातः में चल दी, भाव भीगी चंद्रिका।

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

Views: 914

Comment

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Comment by annapurna bajpai on December 2, 2013 at 11:38pm

अद्भुत !! रचना, आ0 कल्पना दी बहुत सुंदर रचना बधाई आपको एवं आपकी लेखनी को नमन । 

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2013 at 11:08pm

हर कलम की बन ग़ज़ल, शब भर सफर करती रही,

शबनमी प्रातः में चल दी, भाव भीगी चंद्रिका।//////////अनुपम अनुपम। .....  बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया 

Comment by Neeraj Neer on December 2, 2013 at 10:25pm

वाह बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया ..

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