For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?

प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?

यह जमाना हो गया बेदर्द क्यों है ?

है बिना दस्तक चला आता सदा जो

वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?

छू रही है रूह मेरी आते जाते

यह तुम्हारी साँस इतनी सर्द क्यों है ?

अपनी यादों को समेटे जब गए हो

आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ?

प्यार पर करता जुल्म हर रोज है जो

वो समझता खुद को जाने मर्द क्यों है ?

तुम समझती हो मुहब्बत जिसको सरिता

वो बना तेरे लिए सरदर्द क्यों है ?

............मौलिक व अप्रकाशित ............

Views: 673

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:26pm

सरिता जी

आपके भाव मनोरम है i शिल्प के बारे में गुनीजनो के विचारों पर ध्यान देने का कष्ट करे i  

यह मंच  हम सबको सिखाता  है  i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 2:16pm

आदरणीय नादिर खान भाई , अब तक तो मै काफिया को ठीक समझ रहा था , पर आपके पूछ्ने से मै भी श्ंकित हो गया हूँ , मुझे तो अब गज़ल बिना काफिया के लग रही है ,  क्यों कि , दर्द क्यों है पूरा  रदीफ का हिस्सा हो गया है    !!!! जानकार की प्रतिक्रिया का इंतिज़ार करते हैं !!!!!

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2013 at 1:19pm

sundr bhaavon kee sundr gazal...ye sher 

अपनी यादों को समेटे जब गए हो

आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ? bahut sundr hai...haardik badhaaee

Comment by नादिर ख़ान on December 2, 2013 at 11:21pm
प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?
यह जमाना हो गया बेदर्द क्यों है ?

आदरणीया सरिता जी,बहुत, खूब बहुत उम्दा ....अच्छी गज़ल के लिये मुबारकबाद ।

अदरणीय गिरिराज जी आपने बहुत सही कहा। एक बात हम अपनी जानकारी के लिए आपसे पूछ रहे हैं । मतले के शेर मे
क़ाफ़िया दर्द ,बेदर्द लिया गया है इसलिये बाकी के शेर मेंकाफिया हमदर्द,सरदर्द तो ठीक है, पर क्या हम यहाँ क़ाफ़िया सर्द ,गर्द,मर्द use कर सकते हैं? कृपया हमारी जानकारी को पूर्ण करें ।
Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2013 at 11:09pm

सुन्दर प्रस्तुति  .....  बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया सरिता जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2013 at 9:35pm

आदरणीया सरिता जी , गज़ल बहुत खूब सूरत कही है आपने , सभी शे र उम्दा हुये हैं !!!! शायद बह्र , 2122 , 2122 , 2122  है !!!! इसके अनुसार एक मिसरा बेबह्र हो रहा है ---प्यार पर कर/ ता जुल्म हर / रोज है जो  --- 2122  , 2212 , 2122 !!! बीच का रुक्न सुधार लीजियेगा !!!! अगर इसी बह्र मे गज़ल कही है तो !!! अच्छी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service