प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?
यह जमाना हो गया बेदर्द क्यों है ?
है बिना दस्तक चला आता सदा जो
वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?
छू रही है रूह मेरी आते जाते
यह तुम्हारी साँस इतनी सर्द क्यों है ?
अपनी यादों को समेटे जब गए हो
आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ?
प्यार पर करता जुल्म हर रोज है जो
वो समझता खुद को जाने मर्द क्यों है ?
तुम समझती हो मुहब्बत जिसको सरिता
वो बना तेरे लिए सरदर्द क्यों है ?
............मौलिक व अप्रकाशित ............
Comment
सरिता जी
आपके भाव मनोरम है i शिल्प के बारे में गुनीजनो के विचारों पर ध्यान देने का कष्ट करे i
यह मंच हम सबको सिखाता है i
आदरणीय नादिर खान भाई , अब तक तो मै काफिया को ठीक समझ रहा था , पर आपके पूछ्ने से मै भी श्ंकित हो गया हूँ , मुझे तो अब गज़ल बिना काफिया के लग रही है , क्यों कि , दर्द क्यों है पूरा रदीफ का हिस्सा हो गया है !!!! जानकार की प्रतिक्रिया का इंतिज़ार करते हैं !!!!!
sundr bhaavon kee sundr gazal...ye sher
अपनी यादों को समेटे जब गए हो
आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ? bahut sundr hai...haardik badhaaee
सुन्दर प्रस्तुति ..... बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया सरिता जी
आदरणीया सरिता जी , गज़ल बहुत खूब सूरत कही है आपने , सभी शे र उम्दा हुये हैं !!!! शायद बह्र , 2122 , 2122 , 2122 है !!!! इसके अनुसार एक मिसरा बेबह्र हो रहा है ---प्यार पर कर/ ता जुल्म हर / रोज है जो --- 2122 , 2212 , 2122 !!! बीच का रुक्न सुधार लीजियेगा !!!! अगर इसी बह्र मे गज़ल कही है तो !!! अच्छी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!
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