ऐब खुद के ढूंढकर उनसे किनारा कर लिया,
उस जहाँ के वास्ते थोडा सहारा कर लिया.
...
एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,
क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.
...
दर्द हद से बढ़ गया, लेनें लगा फिर जान जब,
दर्द हम जीने लगे उसको ही चारा कर लिया.
...
इक तरफ़ तो मौत थी औ इक तरफ़ बेइज्ज़ती,
और हम करतें भी क्या, मरना गवारा कर लिया.
...
वो हमारे दिल को तोड़ें, था हमें मंज़ूर कब,
हमने ही खुद दिल को अपने पारा पारा कर लिया.
...
एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे,
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया.
...
उम्र अपनें साथ लाई हिचकिचाहट का हिज़ाब,
बचपनें में जी में आया तब इशारा कर लिया.
...
खेल हो बच्चों का जैसे, छोड़ दी यूँ सल्तनत,
गेरुए कपड़ों में गौतम ने गुज़ारा कर लिया.
...............................................................
निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहू बहुत आभार आदरणीय सौरभ सर
बहुत खूब !
पहला शेर वाकई कमाल-धमाल हुआ है. वाकई नज़ारा कर लिया. ..
धन्यवाद शिज्जु जी, जितेन्द्र जी ...आप की दाद से हौसला मिला है ...
शुक्रिया आदरणीय वीनस जी .... शेर आप तक पहुंचा टी लिखना सफल हुआ ...आभार
एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,
क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.
बहुत खूब ,,, इस एक शेर के लिए ढेरो दाद ... सबसे अलग मिजाज का शेर हुआ है
बहुत शानदार गजल, यह शेर खास पसंदीदा हुए दिली दाद कुबूल करें आदरणीय निलेश जी
दर्द हद से बढ़ गया, लेनें लगा फिर जान जब,
दर्द हम जीने लगे उसको ही चारा कर लिया.
.
एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे,
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया...
//एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे,
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया.// वाह बहुत खूब आदरणीय निलेश जी
इस ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें
धन्यवाद आदरणीय आशुतोष जी.
आदरणीय राम शिरोमणि जी "क्या ही था वो एक पल", क्या क्या नज़ारा कर लिया...बहुत बार जब कोई बात, कोई जलवा, कोई अनुभव जब शब्दातीत होता है तो यूँ कहा जाता है... "क्या बताएँ या क्या कहें कि क्या हुआ"" उसी को कहने का प्रयास है .... ये वो मेस्मराइजेशन की अवस्था है जिसमे नज़ारा करने वाला स्वयं उस इफ़ेक्ट से बाहर नहीं हुआ है .... जैसे कोई चमत्कार देखा हो या कोई अलौकिक अनुभव हुआ हो .....
बचपनें में जी में आया ..... यहाँ सामान्य बोलचाल की भाषा को शाइरी से जोड़ने का प्रयास किया है ...उम्र बदने के साथ बचपन तो गया है ...बचपना भी चला गया ..यहाँ रेफरेंस बचपन नहीं ..बचपना है ..... हो सकता है मै बात को ठीक से नहीं कह पाया तभी आप को कुछ खटका है .... मंच के गुनीजनों से सीखते सीखते शायद ये कमीं भी पूरी हो जाएगी. ग़ज़ल पसंद करने हेतु आभार
आदरणीय निलेश जी,सुन्दर ग़ज़ल कही है बधाई स्वीकारें......
एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,
क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.//////// यहाँ कुछ खटक रहा है
उम्र अपनें साथ लाई हिचकिचाहट का हिज़ाब,
बचपनें में जी में आया तब इशारा कर लिया////////////// यहाँ कुछ खटक रहा है
निवेदन है कृपा कर मार्गदर्शन करें ///////सादर
आदरणीय निलेश जी ..हर शेर कमाल का है ,,मेरी तरफ से हार्किक्बधाई ,,सादर
धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण जी, बैद्यनाथ जी, सुशिल जी, गिरिराज जी, मीना जी, अरून शर्मा जी, विजय मिश्र जी ....आप सबके स्नेह से हिम्मत मिलती है ...
आभार
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online