शब्द कोष से संकलित
क्लिष्ट शब्दों का समुच्चय
गद्यनुमा खण्डित पक्तियों में
शब्द संयोजन
कथ्य और प्रयोजन से कोसों दूर
लक्ष्यहीन तीरों के मानिंद
बिम्ब और प्रतीक
कही तो जा धसेंगे
बस
वही होगा लक्ष्य
फिर.......
पाठक का द्वन्द्ध
बार-बार पढ़ना
पग-पग पर अटकना
समझने का प्रयत्न
गुणा भाग, जोड़ घटाव
सुडोकू सुलझाने का प्रयास
और अंततः
एक प्रतिक्रिया
नि:शब्द हूँ ।
***
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>लघुकथा : छवि
Comment
प्रिय अनुज अरुन अनंत जी, निश्चित ही अतुकांत शैली में संतुलित कविता सृजन एक कठिन कार्य है, टिप्प्णी हेतु बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय जीतेन्द्र जी, रचना पर आपकी उपस्थिति और टिप्प्णी मुग्धकारी है ।
आहा ! आदरणीय निगम साहब, कम शब्दों में आपने इस कविता का सारांश लिख दिया, बहुत बहुत आभार ।
आदरणीया डॉ प्राची जी, आपकी उपस्थिति और मंतव्य दोनों का ह्रदय से स्वागत है, उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी हेतु बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय सिज्जू शकूर जी, उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी हेतु आभार ।
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी, आपको कविता पसंद आयी जान अच्छा लगा, आपके कहे को मैं दिल से सम्मान देता हूँ आभार आपका ।
आदरणीय सौरभ भाई , मैने सोचा आदरणीय बागी जी कहने का अर्थ यही है , तो उनकी रचना से ध्यान न बटे इसी लिये हटाया !!! अब आगे से आपकी बात का ध्यान रखूंगा !!! प्लीज़ आप न कहा करें !!! आपका अधिकार है मुझ पर !!!!
//प्रश्न हटा लिया हूँ , वक़्त देख कर सही जगह पूछ लूंगा !!//
आदरणीय गिरिरज जी, ऐसा स्वयं न किया करें. इससे गलत संदेश जाता है. इसके लिए ऐडमिन से अनुरोध किया जाता है.
प्लीज ..
आदरणीय गणेश भाई , आपका सुझाव सर आँखों पर , प्रश्न हटा लिया हूँ , वक़्त देख कर सही जगह पूछ लूंगा !!!! आपका आभार !!!
आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई साहब, प्रस्तुत प्रश्न बहुत ही बढ़िया है किन्तु स्थान उचित नहीं, इस प्रश्न के चक्कर में मेरी रचना से ध्यान डायबर्ट होगा, कृपया सुझाव शिकायत समूह में आप अपना प्रश्न रखें |
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