सन अड़तालीस की तीस जनवरी के दिन
नहीं मरे थे तुम
बापू
तुम एक गोली से
मर भी नहीं सकते थे
तुम्हारे जर्जर हो चुके शरीर को
सिर्फ भेद पाई थी
वह गोली
चंद सूखी लकड़ियों से भी
नहीं जल सकते थे तुम
बापू
तुम्हारी चिता जला पाई थी
सिर्फ तुम्हारे अचेत शरीर को
तुम्हे कंधा देने
उमड़ पड़ा था पूरा देश
आज भी बदस्तूर जारी है
तुम्हें कंधा देना
बापू
आज भी हर घर में
मौजूद हैं आप
दावारों पर टंगे हुए
तिजोरियों में रखे हुए
किताबों में लिखे हुए
बापू
हर क्षण हो रही है
तुम्हारी हत्या
तुम्हारे शरीर के हत्यारे को
दी गई थी फांसी
और तुम्हारे विचारों के हत्यारे
घूम रहें है सरेआम
बापू
तुम बस घूर के देख सकते हो
तुम्हारे हत्यारों की
बुलेट प्रूफ गाड़ियों को
गांधी स्क्वायर से गुजरते हुए
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
एक बहुत ही सशक्त विचार साझा हुआ है, भाईजी.
बापू पर हुई इस कविता के लिए हृदय से बधाई स्वीकारिये.
तुम्हारे शरीर के हत्यारे को
दी गई थी फांसी
और तुम्हारे विचारों के हत्यारे
घूम रहें है सरेआम
बापू
इन पंक्तियों के लिए विशेष बधाई.. .
शुभेच्छाएँ
सुन्दर रचना...
हार्दिक बधाई स्वीकारे आ हेमंत जी...
हर क्षण हो रही है
तुम्हारी हत्या
तुम्हारे शरीर के हत्यारे को
दी गई थी फांसी
और तुम्हारे विचारों के हत्यारे
घूम रहें है सरेआम
बापू
इन पंक्तियों में आज की कटु सत्यता है, आपकी लेखनी को नमन आदरणीय हेमंत जी
चंद सूखी लकड़ियों से भी
नहीं जल सकते थे तुम
बापू....
क्या बात , क्या बात ! आपके जज्बात को नमन करता हूँ ! :)
हेमंत जी
आपके सुन्दर भावो की मै सराहना करता हूँ i
आदरणीय हेमंत भाई जी बापू को समर्पित बहुत ही सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको
हर क्षण हो रही है
तुम्हारी हत्या
तुम्हारे शरीर के हत्यारे को
दी गई थी फांसी
और तुम्हारे विचारों के हत्यारे
घूम रहें है सरेआम
बापू
तुम बस घूर के देख सकते हो
तुम्हारे हत्यारों की
बुलेट प्रूफ गाड़ियों को
गांधी स्क्वायर से गुजरते हुए...............बहुत सटीक कहा आपने आदरणीय.शुभकामनाएँ
सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई आप को
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