ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं
कि कोई तांक झांक न कर सके
लेकिन यहां एक खिड़की है
शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है
एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है
और घूंघट ओड़कर चली जाती है
एक मोटर इस वस्ती से निकलकर
एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज
शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है
उसके कपड़ॆ बहुत उजले हैं
और महीन भी बहुत हैं
नजदीक न जाओ मैले हो सकते हैं
और महीन रेशों के बीच से
परावर्तित किरणें तुम्हरी आंखों को
चौंधिया सकती हैं
दूर ही रहो
शोर मत करो,ये शरीफों की वस्ती है
ताजमहल को उसने नही तो किसने बनाया था
उन मजदूरों, कारीगरों का जिक्र न करो
वो खींच कर ले आया द्रोपदी को भरी सभा में,
निर्वस्त्र करने के लिये
सभासदो उस चीर कि चिन्दिओं से
अपनी आंखें ढक लो,चुपचाप रहो
शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर भाव ली हुयी पंक्तियाँ, सटीक व्यंग बधाई स्वीकारें आदरणीय हेमंत जी
हेमंत जी ..यह तथाकथित शरीफों की बस्ती है ,,वह क्या व्यंग्य किया है आपने ..मेरी मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं ..सादर
वाह आदरणीय क्या खूब कटाक्ष, क्या बिम्ब खींचा है आपने दिल खुश हो गया पढ़कर बहुत ही सुन्दर बधाई आपको
ताजमहल को उसने नही तो किसने बनाया था
उन मजदूरों, कारीगरों का जिक्र न करो
वो खींच कर ले आया द्रोपदी को भरी सभा में,
निर्वस्त्र करने के लिये
सभासदो उस चीर कि चिन्दिओं से
अपनी आंखें ढक लो,चुपचाप रहो
शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है ....wah ati sundr bhaavon kee sundr aur prbhaavi rachna...shubhkaamna
हेमंत जी
बहुत अच्छे भाव है i उत्तरार्ध काफी बांधे रखता है i
मेरी शुभ कामनाये i
आपने इन पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया है........
ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं
कि कोई तांक झांक न कर सके
लेकिन यहां एक खिड़की है
शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है
एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है
और घूंघट ओड़कर चली जाती है
एक मोटर इस वस्ती से निकलकर
एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज
शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है
उसके कपड़ॆ बहुत उजले हैं..........कभी कभी इंसान को बहुत कुछ देखकर भी अनदेखा करना पड़ता है.
सादर
कुंती
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online