For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शरीफों कि वस्ती

ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं

कि कोई तांक झांक न कर सके

लेकिन यहां एक खिड़की है

शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है

एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है

और घूंघट ओड़कर चली जाती है

एक मोटर इस वस्ती से निकलकर

एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है

उसके  कपड़ॆ बहुत उजले हैं

और महीन भी बहुत हैं

नजदीक न जाओ मैले हो सकते हैं

और महीन रेशों के बीच से

परावर्तित किरणें तुम्हरी आंखों को

चौंधिया सकती हैं

दूर ही रहो

शोर मत करो,ये शरीफों की वस्ती है

ताजमहल को उसने नही तो किसने बनाया था

उन मजदूरों, कारीगरों का जिक्र न करो

वो खींच कर ले आया द्रोपदी को भरी सभा में,

निर्वस्त्र करने के लिये

सभासदो उस चीर कि चिन्दिओं से

अपनी आंखें ढक लो,चुपचाप रहो

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है   

 

मौलिक व अप्रकाशित                              

Views: 475

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 5, 2013 at 10:42am

बहुत सुंदर भाव ली हुयी पंक्तियाँ, सटीक व्यंग बधाई स्वीकारें आदरणीय हेमंत जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 8:55am

हेमंत जी ..यह तथाकथित शरीफों की बस्ती है ,,वह क्या व्यंग्य किया है आपने ..मेरी मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं ..सादर 

Comment by Tapan Dubey on December 4, 2013 at 6:50pm
वाह वाह बधाई हेमंत जी
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:51pm

वाह आदरणीय क्या खूब कटाक्ष, क्या बिम्ब खींचा है आपने दिल खुश हो गया पढ़कर बहुत ही सुन्दर बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on December 4, 2013 at 12:34pm
क्या कटाक्ष किया है ! सभी अपराध क्षम्य हैं .... शोर न करो , ये ..... | मन को भा गया भाई हेमन्तजी . बधाई
Comment by Sushil Sarna on December 3, 2013 at 7:50pm

ताजमहल को उसने नही तो किसने बनाया था

उन मजदूरों, कारीगरों का जिक्र न करो

वो खींच कर ले आया द्रोपदी को भरी सभा में,

निर्वस्त्र करने के लिये

सभासदो उस चीर कि चिन्दिओं से

अपनी आंखें ढक लो,चुपचाप रहो

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है   ....wah ati sundr bhaavon kee sundr aur prbhaavi rachna...shubhkaamna

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 5:48pm

हेमंत जी

बहुत अच्छे  भाव है i उत्तरार्ध काफी बांधे रखता है i

मेरी शुभ कामनाये  i

Comment by coontee mukerji on December 3, 2013 at 4:32pm

आपने इन पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया है........

ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं

कि कोई तांक झांक न कर सके

लेकिन यहां एक खिड़की है

शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है

एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है

और घूंघट ओड़कर चली जाती है

एक मोटर इस वस्ती से निकलकर

एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज

शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है

उसके  कपड़ॆ बहुत उजले हैं..........कभी कभी इंसान को बहुत कुछ देखकर भी अनदेखा करना पड़ता है.

सादर

कुंती

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service