सादर वन्दे वन्दनीय सुधी वृन्द।
महानुभावों सर्वज्ञात है, गत 5 दिसम्बर को महर्षि अरविन्द का निर्वाण दिवस था। आपका साहित्य(सावित्री अभी छू भी नहींसकी),मेरे हृदय को बहुत सहलाता है।यद्यपि इस महान दार्शनिक,कवि और योगी के साहित्य की अध्यात्मिक ऊंचाई के दर्शन करने में भी समर्थ नहीं हूँ फिर भी सूरज को दिया दिखाने जैसा कार्य किया है,जो आपको निवेदित है।सादर निवेदन है कि मुझे जरुर अवगत कराएँ की मेरी समझ कहाँ तक सफल हो पाई है।
सांसे इक अद्भुत लय धारा में बहती हैं;
मम सर्वांगों में इसने दैवी शक्ति भरी:
पिया अनन्त रस,जस दैत्य की सुरा आसुरी।
काल हमारा नाटक या स्वप्न बराती है।
आनन्द से हर अंश मेरा अप्लावित है
अब रुख बदला पुलकित,विघटित भाव तन्तु का
हुआ अमूल्य,स्वच्छ हर्षोल्लासित पथ का
जो त्वरित आगमन सर्वोच्च अगोचर का है।
मैं रहा नहीं और,इस शरीर के अधीन,
प्रकृति का अनुचर,उसके शांत नियम का;
नहीं रही मुझमें इच्छाओं की तंग फँसन।
मुक्त आत्मा,असीम दृश्य का तदरूप हुआ
ईश का सजीव सुखद यंत्र यह मेद मेरा,
चिर प्रकाश का भव्य सूर्य यह जीव हुआ।
('Transformation' नामक कविता का अनुवाद,जो श्री अरविन्द ने आध्यात्मिता से आए परिवर्तन को वर्णित करते हुए लिखी थी)
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कुंती महोदया मुझे जानकर बहुत अच्छा लगा कि महर्षि जी का दर्शन आपके इतने करीब है।
आदरणीया मुझे जो भी साहित्य अधिक प्रभावित करता है वो मैं अपनी माँ के लिए अनुवादित करती हूँ,यदि वह साधारण अंग्रेजी में होता है तो।यह कुछ सुनियोजित हुआ सो साझा कर लिया।
आपका स्नेह मिला,सच में गदगद हूँ आदरणीया।
सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रयास सार्थक हुआ।
सादर आभार आपका।
जी जी आदरणीय राजेश मृदु जी,यही है।
आपके अध्ययन को प्रणाम है।
आपकी प्रतिक्रया का बहुत सम्मान करते हुए स्वागत करती हूँ।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।
सादर
आदरणीय नारायण श्रीवास्तव जी इसे भावानुवाद ही कहेंगे!
प्रयास को आपकी सराहना मिली,प्रयास सार्थक हुई।
आपको हार्दिकधन्यवाद आदरणीय।
सादर
सुंदर , अति सुंदर प्रिय वंदना । सराहनीय प्रयास के लिए हार्दिक बधाई संप्रेषित है ।
आदरणीया विन्दु जी:
इस प्रकार की कविता का अनुवाद करना अति कठिन है। अनुवाद में भाव सहज बहने लगें, और मनन के लिए प्रेरित करें ... इसमें आप पूर्णता सफ़ल हुई हैं। आपको बधाई।
सादर,
विजय
बहुत सुंदर अनुवाद किया है वंदना जी. इंडिया में जो मैं पहली हिंदी किताब खरीदी थी वह श्री अरवींद जी की जीवन दर्शन थी. मैं नित्य उसकी एक एक पंक्ति पढ़ती हूँ और उसपर मनन करती हूँ. मन बहुत प्रकाशित होता है. सकारात्मक सोच जीवन को उत्प्रेरक बनाता है.आपने जो प्रयास किया है वह अवश्य ही साराहनीय है जो आपकी अच्छी शिक्षा का द्योतक है.
सादर
कुंती
आदरणीया , मैने ये कविता नही पढ़ी है , पर अनुवाद के भाव बहुत अच्छे लगे , आपको बधाई !!!!
आपको इस सदप्रयास पर हार्दिक बधाई, मैंने ये कविता पढ़ी है उसका अंग्रेजी लेख कुछ इस प्रकार है, गर गलती हो तो बताएं
My breath runs in a subtle rhythmic stream;
It fills my members with a might divine:
I have drunk the Infinite like a giant’s wine.
Time is my drama or my pageant dream.
Now are my illumined cells joy’s flaming scheme
And changed my thrilled and branching nerves to fine
Channels of rapture opal and hyaline
For the influx of the Unknown and the Supreme.
I am no more a vassal of flesh,
A slave to Nature and her leaden rule;
I am caught no more in the senses’ narrow mesh.
My soul unhorizoned widens to measureless sight,
My body is God’s happy living tool,
My spirit a vast sun of deathless light.
वंदना जी
शब्दानुवाद/भावानुवाद /छायानुवाद जो भी है मन को छूता है i
अरविन्द जी का दर्शन --- शब्दातीत i
आपको ढेर सी बधाइयाँ i
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