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मुश्किल काम होता है

चढ़ाये रखना ,

लगातार बहुत समय तक 

सजावट को ,

रह पाये कोई अगर तुम्हारे साथ

अधिक समय तक

लगातार, तो

फीकी पड़ने लगेंगी

उतरने लगेंगी

दरकने लगेंगी

परत दर परत

सजावटें

अव्यवस्थित हो जायेंगी

सारी सावधानियाँ

जाहिर होने लगेगा

असली रूप !!!

मुखौटे

चाहे आप चेहरे पे चढ़ाये हों

या

अपनी भावनाओं पर !!!!

*******************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 2:28pm

आदरणीय अरुण भाई , रचना की तह तक जा कर आपने प्रतिक्रिया दी है , उसके लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!! आदरणीय दूसरे सन्देश की नौबत न आये तो ही अच्छा होता है !!!! सरलता बड़ी बात होती है !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 2:25pm

आदारणीय बड़े भाई विजय जी , आपने रचना को गहराई से समझा  आपकी प्रतिक्रिया ने रचना का मान बढ़ा दिया !!! आपका आभार !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 12, 2013 at 2:22pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी  हूँ !!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 12, 2013 at 11:30am

अव्यवस्थित हो जायेंगी

सारी सावधानियाँ

जाहिर होने लगेगा

असली रूप !!!

मुखौटे

चाहे आप चेहरे पे चढ़ाये हों

या

अपनी भावनाओं पर !!!!

एक कटु सत्य ली हुयी रचना , झूठी सहानुभूतियो को बेनकाब करती पंक्तियाँ . सच! इन्सान का असली रूप सामने आता ही आता है, चाहे उसने कितने ही मुखोटे या आडम्बर बना रखे हों, जीवन में अपनी भावनाओं के साथ, दूसरों की भावनाओं को भी समझना पड़ता है, बस समय निकल जाता है हाथों से, यही एक नुकसान हो जाता है,    इस रचना पर हृदय से बधाई आदरणीय गिरिराज जी

Comment by Arun Sri on December 12, 2013 at 11:04am

सच कहा !

समय के साथ हर दिखावा अपना असली रूप जरूर दिखाता है !

कविता का दूसरा सन्देश ये कि एक बार सजावट कर निश्चिन्त न ओ जाया जाय ! समय समय पर लीपापोती करते रहना चाहिए ! :-))))

Comment by vijay nikore on December 12, 2013 at 8:57am

शब्द नहीं हैं कहने को कि कैसे इतनी सरलता से आपने इस रचना में मुझको हर नए रिश्ते की परख दे दी है।

काश मैं यह जानते हुए भी मूल सत्यों को अपना न सका।

आपका आभार, आदरणीय भाए गिरिराज जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 11, 2013 at 8:07pm

मित्र अनुज  गिरिराज जी

सजावट की नित्यता पर आपने जो प्रकाश डाला है , उसके प्रति  रचनाकारों को सजग होना चाहिए i

बहुत सुन्दर i बधाई i

कृपया ध्यान दे...

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