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1)

आपस  के  संवाद में,  कितने  ही  मंतव्य !
कुछ तो हैं संयत-सहज, अक्सर हैं वायव्य
अक्सर  हैं   वायव्य,   शब्द से  चोट करारी
वैचारिक  प्रतिकार,  अहं  ने  मति भी मारी
वाक्य-वाक्य में व्यंग्य, ढंग क्या हैं मानस के ?
हे ! मानव समुदाय, यही क्या सुख आपस के ?

 
 
2)
ऊँचा   उठता  है   धुआँ,   नीचे  जाती   धार
पर सचेत-मन व्यक्ति का, यथा उचित व्यवहार  
यथा  उचित   व्यवहार,  तभी  वह  संसारी  हो
’सीख - सिखाना’  कर्म   साधना  सुखकारी  हो
चर्चा,   नहीं   विवाद,   इसी  में  सार   समूचा
शिष्ट बुद्धि,  सद्भाव,   उठाते  जन  को  ऊँचा !

************************

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:07pm

भाई तपनजी, आपका सादर धन्यवाद.

यदि यह छंद-प्रयास किसी काबिल दिख रहा है तो यह आपकी सदाशयता ही है. हृदय की गहराइयों से मेरा धन्यवाद स्वीकार करें.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:07pm

आदरणीय राजेशभाई, आपको मेरे कहे में, थोड़ी ही सही, सार्थकता दिखी, यह मेरे प्रयास को आपसे मिला अनुमोदन ही है.

और, भाईजी, आपने तो रचना-प्रक्रिया के पर्दे को ही अचानक उठा दिया.. अचानक मानों यह उरियाँ हो गयी लग रही है....
हा हा हा हा..
आप मय, मयकदा, साकी आदि-आदि पढ़ते शाइर का ज़रूर मुँह सूँघ लिया करते होंगे.. हा हा हा.. :-)))))

जी अवश्य भाईजी, आप रचना को रचना के कथ्य और शिल्प के हिसाब ही देखें.
मैं अचानक नहीं, हाँ, कभी-कभी ही लिख पाता हूँ. यह मेरी मज़बूरी भी है और आदत भी.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:06pm

आदरणीय गिरिराजजी, आपको मेरा प्रयास रुचिकर लगा, इसके लिए मैं भी आपका आभारी हूँ.

आप सभी की रचनाओं और प्रस्तुतियों पर धीरे-धीरे पहुँचने का प्रयास कर रहा हूँ.
विश्वास है आप मेरी विवशता समझ रहे होंगे.
आपकी प्रतिक्रिया दोहे के लिए बहुत-बहुत बधाई.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:05pm

आदरणीय अशोकजी, आपका सादर धन्यवाद कि आपको मेरा छंद-प्रयास रुचिकर लगा.
आपकी सुगढ़ प्रतिक्रिया छंद के लिए सादर धन्यवाद और आपको बधाइयाँ.
आजकल बेतहाशा बढ़ गयी व्यस्तता के कारण रचनाकर्म कम ही हो पारहा है. कई रचनाओं पर मैं अभी पहुँचा ही नहीं हूँ.

इसका बहुत खेद है. पहुँच रहा एक-एक करके.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 5:04pm

आदरणीया, राजेश कुमारी जी, आपका सदा स्वागत है. धन्यवाद कि आपने मेरे कहे को इतना मान दिया.

आपकी उर्वर रचना-प्रक्रिया वस्तुतः हम सभी को चकित करती है. और ये भी कि बेतकल्लुफ़ी आपके गुणधर्म का महत्त्वपूर्ण भाग है. देखिये न, आपकी प्रतिक्रिया छंद में दोहे वाले भाग में दूसरा विषम चरण मात्रिकता के मामले में हिलडुल गया और मात्रा बह गयी है. गेयता खुनक रही है.. हा हा हा..  :-)))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:30pm

आदरणीय श्यामजी, बहुत-बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:27pm

भाई अरुण श्री, आपकी संवेदनापूरित टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:27pm

आदरणीया प्राचीजी, आपके मुखर अनुमोदन ने मेरे रचनाकर्म को मान दिया है. दोनों छंद सार्थक हुए हैं यह सुनना अच्छा भी लगा है.. :-))))

सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:27pm

भाई जितेन्द्रजी, बहुत-बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 4:26pm

भाई शिज्जूजी, आपकी मुखर और एक सकारात्मक टिप्प्णी के लिए मैं आपका तहेदिल से आभारी हूँ.
भाईजी, एक संवेदनशील हृदय पाठक ही इस तटस्थता और इतनी गंभीरता से कुछ निवेदन कर सकता है. प्रस्तुति के संदर्भ में आपकी इस टिप्पणी ने आपके प्रति मेरे मन में और सम्मान बढ़ाया है.
शुभ-शुभ

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