बहर-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ
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लिपट के आबशारों से तराने खो गए होंगे।
उतर के देवदारों से उजाले सो गए होंगे॥
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जिन्हें मालूम है दुनिया मुहब्बत की इमारत है,
ग़ुज़र के मैकदे से भी वही घर को गए होंगे।
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न परियों का फ़साना था न किस्से देवताओं के,
कहानी कौन सी सुन के सलोने सो गए होंगे।
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उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे।
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ज़रा सी चाँदनी छू लें,सितारों की दमक देखें,
यही कहते,यही सुनते ज़माने हो गए होंगे।
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-मौलिक व अप्रकाशित।
-15.12.2013
Comment
behad khoobsoorat sheron se sja guldasta...wah bahut khoob Ravi Parkash jee...haardik badhaaee
आ. रवि भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , बधाई स्वीकार करें ॥
भाई वाह रवि प्रकाश जी
बहुत अर्थपूर्ण ग़ज़ल कही आपने i आपको धन्यवाद i
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