(1)
आयो मेरे पास आयो
.
देश मेरा उजड़ रहा है
आओ मेरे पास आओ
कितने ही दुख भोग रहा है
आओ मेरे पास आओ
एक तरफ चाकू है चलता
दूसरी तरफ नरसंहार है
आतंकवाद है उससे ऊपर
सबसे ऊपर बलात्कार है
कितनों के दिल तोड़े इसने
घर कितनो के उजाड़े हैं
आँख के तारे छीने इसने
माँग के सिंदूर उजाड़े हैं
पाप की नगरी से डर लगता
आकर मुझको गले लगाओ
तुमसे बिछड़ न जाऊँ कहीं मैं
आयो मेरे पास आयो
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(2)
उग्रवाद
पर लग जाते खग से मुझसे
धरा छोड़ उड़ जाता नभ में
जाति पाति का भेद न होता
आपस मे कुछ द्वेश न होता
उग्रवाद का नाम न होता
हथियारों का काम न होता
मानव का फिर लहू न बहता
नीला अम्बर लाल न होता
....................................
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
दोनों कविताओं की भावदशा यथार्थ को प्रस्तुत करती है, सुन्दर है और अंतर गेयता भी प्रभावी है.... पर कथ्य विन्यास और शिल्प दोनों ही और बेहतर हो सकते हैं...और, आओ को आयो क्यों लिखा गया है ?
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दोनों ही रचनाओं के लिए बधाई..
दोनों ही कवितायें बहुत ही सुंदर बन पड़ी है , दूसरी कविता ज्यादा दमदार है । बधाई आपको दोनों रचनाओं के लिए आ0 नीरज खरे जी ।
आदरणीय नीरज भाई ओ बी ओ पर आपका हार्दिक स्वागत है, दोनों ही कवितायेँ यथार्थ बयां कर रही हैं भाव बहुत ही अच्छा है हार्दिक बधाई स्वीकारें.
दोनों कविताएँ बहुत सुन्दर | सादर बधाई आदरणीय
आदरणीय नीरज भाई , दोनो कविता के भाव बहुत सुन्दर लगे ॥सुन्दर कविताओं के लिये आपको अनेकों बधाइयाँ ॥
बहुत सुंदर
प्रिय नीरज जी
आपकी दो कविताये पढी i सचमुच आप परिपक्व हो गए है i दूसरी कविता की धार बहुत पैनी है i आप इस तरह लिखेंगे तो मुझे गर्व होगा i बहुत बहुरत बधाई i
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