For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(1)

आयो मेरे पास आयो

.

देश मेरा उजड़ रहा है
आओ मेरे पास आओ
कितने ही दुख भोग रहा है
आओ मेरे पास आओ
एक तरफ चाकू है चलता
दूसरी तरफ नरसंहार है
आतंकवाद है उससे ऊपर
सबसे ऊपर बलात्कार है
कितनों के दिल तोड़े इसने
घर कितनो के उजाड़े हैं
आँख के तारे छीने इसने
माँग के सिंदूर उजाड़े हैं
पाप की नगरी से डर लगता
आकर मुझको गले लगाओ
तुमसे बिछड़ न जाऊँ कहीं मैं
 आयो मेरे पास आयो

----------------------------------------

(2)

उग्रवाद

पर लग जाते खग से मुझसे
धरा छोड़ उड़ जाता नभ में
जाति पाति का भेद न होता
आपस मे कुछ द्वेश न होता
उग्रवाद का नाम न होता
हथियारों का काम न होता
मानव का फिर लहू न बहता
नीला अम्बर लाल   न होता                             

....................................


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 476

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 26, 2013 at 4:11pm

दोनों कविताओं की भावदशा यथार्थ को प्रस्तुत करती है, सुन्दर है और अंतर गेयता भी प्रभावी है.... पर कथ्य विन्यास और शिल्प दोनों ही और बेहतर हो सकते हैं...और, आओ को आयो क्यों लिखा गया है ?

मंच पर अन्य प्रस्तुतियों को भी पढ़िए..

दोनों ही रचनाओं के लिए बधाई..

Comment by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 6:14pm

दोनों ही कवितायें बहुत ही सुंदर बन पड़ी है , दूसरी कविता ज्यादा दमदार है । बधाई आपको दोनों रचनाओं के लिए आ0 नीरज खरे जी । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 1:10pm

आदरणीय नीरज भाई ओ बी ओ पर आपका हार्दिक स्वागत है, दोनों ही कवितायेँ यथार्थ बयां कर रही हैं भाव बहुत ही अच्छा है हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 12:26pm

दोनों कविताएँ बहुत सुन्दर | सादर बधाई आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 9:08pm

आदरणीय नीरज भाई , दोनो कविता के भाव बहुत सुन्दर लगे ॥सुन्दर कविताओं के लिये आपको अनेकों बधाइयाँ ॥

Comment by savitamishra on December 20, 2013 at 7:19pm

बहुत सुंदर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2013 at 7:11pm

प्रिय नीरज जी

आपकी दो कविताये पढी i सचमुच आप परिपक्व हो गए है i  दूसरी कविता की धार बहुत पैनी है i आप इस तरह लिखेंगे तो मुझे  गर्व होगा i बहुत बहुरत बधाई  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service