For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल -वंदना

मंच पर सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए

२१२२  १२१२  २२१ 

पैरवी मेरी कर न पाई चोट                                                          

पास रहकर रही पराई चोट

फलसफे अनगिनत सिखा ही देगी

असल में करती रहनुमाई चोट

महके चन्दन पिसे भी सिल पर तो

रोता कब है कि मैनें खाई चोट

सब्र का ही तो मिला सिला हमको

सहते रहकर मिली सवाई चोट

तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसां

क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई  चोट  

रस्म केवल मिज़ाजपुर्सी भी

"जानता कौन है पराई चोट"

उठ ही पाये कभी न मुड़कर देखा

मुस्कुराई कि खिलखिलाई चोट  

 

   संशोधन के पश्चात् 

  वज्न

     2122   1212   22

 

      पैरवी मेरी कर न पाई चोट

      पास रहकर रही पराई चोट

     फलसफे अनगिनत सिखा देगी

    अस्ल में करती रहनुमाई चोट

    महके चन्दन घिसें जो सिल पर तो

    रोता कब है कि मैनें खाई चोट

    सब्र का ही मिला सिला हमको

    सहते रहकर मिली सवाई चोट

    तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसां

    क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई चोट 

    रस्म केवल मिज़ाजपुर्सी भी

    जानता कौन है पराई चोट

     उठ ही पाये न देख ही पाये 

    मुस्कुराई कि खिलखिलाई चोट 

 

***

 

***

मौलिक एवं अप्रकाशित

****

तरही मिसरा आदरणीय  फ़ानी बदायूँनी साहब की ग़ज़ल से 

Views: 1106

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on December 3, 2014 at 3:22pm

बहुत सुंदर, शुभकामनायें.

Comment by vandana on January 9, 2014 at 3:35pm

आदरणीय सौरभ सर आपके पूछे जाने पर तरही ग़ज़ल से सम्बंधित मेरी जानकारी से इतर संभावना ढूंढने की कोशिश में  यहाँ कुछ नहीं लिखा था|

कष्ट के लिए क्षमा चाहती हूँ ,आगे से ध्यान रखूँगी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 8, 2014 at 2:21pm

ओह फ़ानी साहब का मिसरा था ?!  ये तो मैं देख ही नहीं पाया था.  अब समझा कि आपने इसे तरही ग़ज़ल क्यों कहा है.

भूल के लिए क्षमा.

वैसे किसी प्रस्तुति या उसकी प्रतिक्रिया(ओं) से सम्बन्धित प्रश्न यहीं स्पष्ट हो जाने चाहिये.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 7, 2014 at 11:26pm

इसे आपने तरहीग़ज़ल क्यों कहा है ?

ग़ज़ल पर हुई चर्चा पर तो यही कहूँगा.. सुबहानअल्लाह

शुभेच्छाएँ

Comment by vandana on January 4, 2014 at 5:18am

आदरणीय अरुण  जी हौसलाअफजाई के लिए बहुत 2 धन्यवाद 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2014 at 5:57pm

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने वंदना जी एक एक शेर शानदार बन पड़ा है दिली दाद कुबूल फरमाएं

Comment by vandana on January 3, 2014 at 5:52am

आदरणीया महिमा जी बहुत२ शुक्रिया 

Comment by vandana on January 3, 2014 at 5:34am

आदरणीय जितेन्द्र जी आपने अपना बहुमूल्य समय दिया और हौसला बढाया उसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ 

Comment by vandana on January 3, 2014 at 5:33am

आदरणीया कुंती जी उत्साहवर्धन करने के लिए हृदय से आपका बहुत२ आभार 

Comment by vandana on January 3, 2014 at 5:31am

आदरणीय गिरिराज सर आपके सकारात्मक दृष्टिकोण को सादर नमन हम सभी के सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहे यही दुआ है  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service