मंच पर सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए
२१२२ १२१२ २२१
पैरवी मेरी कर न पाई चोट
पास रहकर रही पराई चोट
फलसफे अनगिनत सिखा ही देगी
असल में करती रहनुमाई चोट
महके चन्दन पिसे भी सिल पर तो
रोता कब है कि मैनें खाई चोट
सब्र का ही तो मिला सिला हमको
सहते रहकर मिली सवाई चोट
तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसां
क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई चोट
रस्म केवल मिज़ाजपुर्सी भी
"जानता कौन है पराई चोट"
उठ ही पाये कभी न मुड़कर देखा
मुस्कुराई कि खिलखिलाई चोट
संशोधन के पश्चात् वज्न 2122 1212 22
पैरवी मेरी कर न पाई चोट पास रहकर रही पराई चोट फलसफे अनगिनत सिखा देगी अस्ल में करती रहनुमाई चोट महके चन्दन घिसें जो सिल पर तो रोता कब है कि मैनें खाई चोट सब्र का ही मिला सिला हमको सहते रहकर मिली सवाई चोट तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसां क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई चोट रस्म केवल मिज़ाजपुर्सी भी जानता कौन है पराई चोट उठ ही पाये न देख ही पाये मुस्कुराई कि खिलखिलाई चोट
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मौलिक एवं अप्रकाशित
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तरही मिसरा आदरणीय फ़ानी बदायूँनी साहब की ग़ज़ल से
Comment
बहुत सुंदर, शुभकामनायें.
आदरणीय सौरभ सर आपके पूछे जाने पर तरही ग़ज़ल से सम्बंधित मेरी जानकारी से इतर संभावना ढूंढने की कोशिश में यहाँ कुछ नहीं लिखा था|
कष्ट के लिए क्षमा चाहती हूँ ,आगे से ध्यान रखूँगी |
ओह फ़ानी साहब का मिसरा था ?! ये तो मैं देख ही नहीं पाया था. अब समझा कि आपने इसे तरही ग़ज़ल क्यों कहा है.
भूल के लिए क्षमा.
वैसे किसी प्रस्तुति या उसकी प्रतिक्रिया(ओं) से सम्बन्धित प्रश्न यहीं स्पष्ट हो जाने चाहिये.
इसे आपने तरहीग़ज़ल क्यों कहा है ?
ग़ज़ल पर हुई चर्चा पर तो यही कहूँगा.. सुबहानअल्लाह
शुभेच्छाएँ
आदरणीय अरुण जी हौसलाअफजाई के लिए बहुत 2 धन्यवाद
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने वंदना जी एक एक शेर शानदार बन पड़ा है दिली दाद कुबूल फरमाएं
आदरणीया महिमा जी बहुत२ शुक्रिया
आदरणीय जितेन्द्र जी आपने अपना बहुमूल्य समय दिया और हौसला बढाया उसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ
आदरणीया कुंती जी उत्साहवर्धन करने के लिए हृदय से आपका बहुत२ आभार
आदरणीय गिरिराज सर आपके सकारात्मक दृष्टिकोण को सादर नमन हम सभी के सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहे यही दुआ है
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