नेह रचित इक बाती रखना
दीप दान की थाती रखना
जग के अंकगणित में उलझे
कुछ सुलझे से कुछ अनसुलझे
गठबंधन कर संबंधों की
स्नेहिल परिमल पाती रखना
कुछ सहमी सी कुछ सकुचाई
जिनकी किस्मत थी धुंधलाई
मलिन बस्तियों के होठों पर
कलियाँ कुछ मुस्काती रखना
बंद खिडकियों को खुलवाकर
दहलीजों पर रंग सजाकर
जगमग बिजली की लड़ियों से
दीपमाल बतियाती रखना
मधुरिम मधुरिम अपनेपन…
ContinueAdded by vandana on October 14, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए -
वज्न 2122 / 2122 / 2122 / 212 (2121)
कोई तुझसा होगा भी क्या इस जहाँ में कारसाज
डर कबूतर को सिखाने रच दिए हैं तूने बाज
तीरगी के करते सौदे छुपछुपा जो रात - दिन
कर रहे हैं वो दिखावा ढूँढते फिरते सिराज
ज्यादती पाले की सह लें तो बिफर जाती है धूप
कर्ज पहले से ही सिर था और गिर पड़ती है गाज
जो ज़मीं से जुड़ के रहना मानते हैं फ़र्ज़-ए-जाँ
वो ही काँधे को झुकाए बन…
ContinueAdded by vandana on February 1, 2014 at 7:30am — 25 Comments
मंच पर सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए
२१२२ १२१२ २२१
पैरवी मेरी कर न पाई चोट
पास रहकर रही पराई चोट
फलसफे अनगिनत सिखा ही देगी
असल में करती रहनुमाई चोट
महके चन्दन पिसे भी सिल पर तो
रोता कब है कि मैनें खाई चोट
सब्र का ही तो मिला सिला हमको
सहते रहकर मिली सवाई चोट
तन्हा ढ़ोता है दर्द हर इंसां
क्यूँ तू रिश्ते बढ़ा न पाई चोट…
ContinueAdded by vandana on January 2, 2014 at 8:00am — 22 Comments
प्राचार्य जी के साथ विद्यालय से निकल के कुछ दूर चले ही थे कि मुखिया जी ने पुकार लिया | बैठक में काफी लोग चर्चामग्न थे | बढती बेरोजगारी और आतंकवाद के परस्पर सम्बन्धों से लेकर शिक्षित लोगों के ग्राम पलायन तक अनेक मुद्दों पर सार्थक विचार गंगा बह रही थी |कुछ देर बाद जब अधिकांश लोग उठकर चले गए तो मुखिया जी ने प्राचार्य जी से कहा –
“वो रामदीन के नवीं कक्षा वाले छोरे को पूरक क्यों दे दी ?”…
ContinueAdded by vandana on October 8, 2013 at 7:30am — 15 Comments
पूर्वाग्रह तो छोडिये मिलिए स्व बिसराय
मुख धरे डली नून की मीठो स्वाद न पाय
अनुशासित होकर रहे पतंग उड़े अकास
भागी फिरे कुरंग सम डोर पिया के पास
सिकुड़े गलियारे सहन ऊँची मन दहलीज
गलती माली की रही कैसे बोये बीज
कब तक परछाई चले पूछ न कितनी दूर
धूप चढ़े सिर बावरी छाया थक कर चूर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by vandana on September 7, 2013 at 7:00am — 12 Comments
बहुत बरस पहले एक राजा था एक रात उसने एक सपना देखा कि सूरज भरी दोपहर में अपना सुनहरा पीला रंग छोड़ कर लाल हो रहा था एकदम सुर्ख लाल | राजा अनजाने भय से काँप उठा सुबह उसने अपनी बिरादरी के लोगों से इस सपने का जिक्र किया पता लगा उन्होंने भी ऐसा ही सपना देखा है |
मंत्रियों पंडितों से विचार विमर्श कर पाया कि यह किसी परिवर्तन का संकेत है |
ओह !तब तो जल्द ही कुछ सोचना होगा राजा परेशान हो उठा | सलाह मशविरा किया तो पता लगा राज्य में कुछ लोगों का जीवन स्तर सामान्य…
ContinueAdded by vandana on August 27, 2013 at 7:30am — 10 Comments
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