प्राचार्य जी के साथ विद्यालय से निकल के कुछ दूर चले ही थे कि मुखिया जी ने पुकार लिया | बैठक में काफी लोग चर्चामग्न थे | बढती बेरोजगारी और आतंकवाद के परस्पर सम्बन्धों से लेकर शिक्षित लोगों के ग्राम पलायन तक अनेक मुद्दों पर सार्थक विचार गंगा बह रही थी |कुछ देर बाद जब अधिकांश लोग उठकर चले गए तो मुखिया जी ने प्राचार्य जी से कहा –
“वो रामदीन के नवीं कक्षा वाले छोरे को पूरक क्यों दे दी ?”
“मुखिया जी लड़के की स्कूल में 30 प्रतिशत हाजिरी भी नहीं होती और कॉपियाँ बिलकुल खाली छोड़ रखी थी फिर भला ......”
“मास्टर जी सरकार तो साक्षरता बढ़ाने की बात करती है और आप बच्चों की पढाई छुडवाने में लगे हैं |”
“मुखिया जी साक्षरता के नाम पर ही आठवीं तक बच्चों को फ़ेल नहीं किया जाता और परिणामत: उस स्तर तक मेहनत के अभाव में नवीं तक भी बच्चा सामान्य गणित और अंग्रेजी की बात तो जाने दीजिये हिंदी में भी अपनी बात अभिव्यक्त नहीं कर पाता और फिर हमें दसवीं का परिणाम भी तो देखना होता है |” मैं बिना बोले न रह सका |
“दसवीं तो फिर देखना अभी तो उसे पास करने का ध्यान रखो बस इसीलिये बुलवाया था |” कहकर मुखिया जी ने हाथ जोड़ हमें अपने हाव भाव से विदाई दे दी थी |
मैं सोच रहा था कि “क्यूँ भागीरथ के देश में अब कोई गंगा चौपाल की सीढियां तक नहीं उतर पाती|”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत अच्छी लघु कथा. आपको हार्दिक बधाई!
कुछ शंकाएं थी जिनका समाधान चाहता हूँ.
//प्राचार्य जी के साथ विद्यालय से निकल के कुछ दूर चले ही थे// कौन?
//छोरे को पूरक क्यों दे दी ?”// मतलब?
सादर!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ सर
शिक्षा विभाग की एक दुखती सच्चाई को साझा करती लघुकथा...
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सारथी जी और शुभ्रांशु जी कि आपने अपना अमूल्य समय दिया
आदरणीय अखिलेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपके विचारों का बहुत बहुत स्वागत है
आपकी टिप्पणी के क्रम में इतना जरूर कहना चाहूंगी कि भ्रष्टाचार का सम्बन्ध शिक्षा से नहीं मन की कमजोरी से है रामदीन का बेटा क्या बनेगा यह तो वक़्त तय करेगा पर शिक्षा के माध्यम से वह इस लायक हो पाता कि पढ़े लिखे भ्रष्टाचारी उसे ठगने से पहले सौ बार सोचें और रही पूरक की बात तो वह तो तभी आती है जब या तो बच्चा एक या दो विषय में कमजोर हो या कुछ अध्यापक उदारमन से अंक देते रहते हैं और वहीँ एक दो अध्यापक बच्चे को चेताने के लिए टेस्ट और अर्द्धवार्षिक में सही मूल्यांकन करते हुए बच्चों को कॉपी दिखाकर उनकी गलतियाँ बताते हैं फिर वार्षिक परीक्षा में उदारता दिखाकर भी पास लायक कुल अंक नहीं आ पाते .
चलिए बात चीत का क्रम यूँ ही बना रहे हम सभी एक दूसरे के दृष्टि कोण को जाने और लेखन समृद्ध हो यही कामना है सादर
आदरणीया वन्दना जी, शिक्षा जगत में व्याप्त कमजोरियों को उजागर करने के लिये एक सुन्दर कथा का सहारा लिया है...
सादर.
कापियाँ बिल्कुल खाली छोड़ने पर पूरक भी नहीं मिलना था उससे अच्छा है पास कर देते । 90 से 100 प्रतिशत अंक वाले और बड़ी डिग्रीधारी देश को लाखों करोड़ों मे लूटते है। इस देश में जो जितना पढ़ा वो उतना धूर्त । रामदीन का बेटा सीधा साधा चपरासी बनेगा लेकिन उच्च स्तर का भ्रष्टाचारी नहीं बनेगा। आ. वंदनाजी अन्यथा न लें और लघु कथा पर मेरी बधाई स्वीकार करें।.... सादर ।
आपका कथ्य ...पाठकों तक पहुँचता है ! बहुत ही बढ़िया लघु कथा ... बधाई :)
आदरणीय अरुण जी आपका भी सार्थक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार
सही टिप्पणियाँ लेखन को सुधारने में सहायक होती हैं आपका मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहा है कृपया उस भाग को स्पष्टत: इंगित कीजिए जो समझ नहीं आ रहा ताकि सुधार कर पाठक तक बात को पहुँचाया जा सके
आदरणीय सुशील जी ,शिज्जू जी अन्नपूर्णा जी और गिरिराज सर को हार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार
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