For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत बरस पहले एक राजा था एक रात उसने एक सपना देखा कि सूरज भरी दोपहर में अपना सुनहरा पीला रंग छोड़ कर लाल हो रहा था एकदम सुर्ख लाल  |  राजा अनजाने भय से काँप उठा  सुबह उसने अपनी बिरादरी के लोगों से इस सपने का जिक्र किया पता लगा उन्होंने भी ऐसा ही सपना देखा है |  

मंत्रियों पंडितों से विचार विमर्श कर पाया कि यह किसी परिवर्तन का संकेत है |

 

ओह !तब तो जल्द ही कुछ सोचना होगा राजा  परेशान हो उठा  | सलाह मशविरा किया तो पता लगा राज्य में कुछ लोगों का जीवन स्तर सामान्य से कहीं बहुत नीचा है इतना कि उन लोगों साँसलेने के लिए भी हवा बहुत कम रहती है इसीलिये गर्मी बढ़ रही है और उनकी गर्म साँसे सूरज को तपाने लगी हैं |

 

राजा ने फैसला किया कि उन लोगों को थोड़ी खुली जगह व सुविधाएँ दी जाएँ तो वे लोग भी सामान्य रूप से साँस ले सकेंगे और सूरज को लाल होने से रोका जा सकेगा |

ऐसा ही किया गया और एक बाड़ा बना दिया गया  बाड़े के लोगों को साँस लेने की जगह तो मिल गयी पर मुख्य सड़क पर आने के लिए उनसे पहचान की मांग की जाने लगी और पहचान के रूप में बैसाखी लेकर चलना अनिवार्य कर दिया गया |

उधर जो लोग बाड़े से बाहर सामान्य जीवन जी रहे थे उन्हें लगा कि बाड़े वालों को अधिक महत्व मिल रहा है तो उन्होंने भी राजा से बाड़े में जाने की मांग की  | वे भी बैसाखियाँ लेकर चलने को तैयार थे |  राजा के मन में सपने का भय अब भी था  | इन लोगों को वह पुराने में तो नहीं भेज सकता था इसलिए एक नया बाड़ा बना दिया गया |  बाड़ों की सुविधाओं का प्रचार जोरों पर था अत: साल दर साल नए नए बाड़ों की मांग बढती रही |  बाड़े बनते रहे और नए नामकरण होते रहे नवीनतम बाड़े का नाम बी.पी.एल. रखा गया था |  सब्सिडी ज्यादा थी या नहीं लेकिन सुविधा संपन्न लोग भी इस बाड़े की तरफ अपना साजो सामान उठाये भाग रहे थे और राजा के महल में तरक्की की शहनाई को फेफड़े भर हवा मिल रही थी  |

सूरज लाल तो था पर गर्म नहीं शायद रात आने को थी  |

वंदना 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 476

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 1:37am

ग़ज़ब !

इस कथा के इशारे स्पष्ट और भेदक हैं.  हार्दिक बधाइयाँ वन्दनाजी.

सादर

Comment by विजय मिश्र on August 28, 2013 at 11:46am
बिम्ब ,ब्यंग ,व्यञ्जना ,विषय सब सुंदर और ढंग से इस बिलटी राज व्यवस्था का वर्णन .साधुवाद वंदनाजी .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 28, 2013 at 11:15am

आदरणीया वंदना जी,सटीक व् सामयिक लघुकथा पर हार्दिक बधाई

Comment by annapurna bajpai on August 27, 2013 at 11:03pm

आ० वंदना जी बहुत बढ़िया लघु कथा के लिए बधाई स्वीकारें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 27, 2013 at 10:27pm

आ० वन्दना जी 

इंगितों के माध्यम से क्या खूब सामयिक व्यंग अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है ....पढ़ कर मन मुग्ध है 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by राज़ नवादवी on August 27, 2013 at 9:55pm

सुन्दर व्यंग है. सच के रेखांकन में प्रतीकों का सफल प्रयोग.  

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 27, 2013 at 3:55pm

आदरणीय वाह बहुत ही सुन्दर लघुकथा कितनी गहरी बात कही है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by aman kumar on August 27, 2013 at 2:58pm

सूरज लाल तो था पर गर्म नहीं ..........

यही दशा है आज देश के मनोबल की .

बहुत विचारपूर्ण प्रशन हाई आपकी कथा मे .

आभार

Comment by रविकर on August 27, 2013 at 2:18pm

बहुत सुन्दर सत्य कथा-
सहमत है आदरणीया-

राजा रोजा ना करे, पर करता इफ्तार |
मिले फैसले का सिला, वोट बैंक आधार |


वोट बैंक आधार, खजाना चला लुटाता |
बाड़ा कर तैयार, सुनिश्चित जीत कराता |


मिडिल क्लास पर मार, बजा के उसका बाजा |
रहा वसूल लगान, कबाड़े धरती राजा ||


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2013 at 1:34pm

आदरणीया वन्दना जी , आज की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को बहुत अच्छे से बयान किया आपने !! बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service