गुस्ताख निगाहें भी पहली नज़र में फिसल गई ,
जी भर के देख भी न पाया ,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
नादान दिल के कदम भी लड़खड़ाते-लड़खड़ाते संभल गए ,
दूरी मै तय न कर पाया ,
इसमें राहों का क्या कसूर था।
चंद लम्हा भी तेरे बिन रेह न सका, तेरे प्यार में इतना मजबूर हुआ ,
वक़्त ने हरकत ऐसी ली,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
रूबरू हुआ जब तुझसे मै, मुझपे सवार तेरा फितूर हुआ ,
ज़ोर किसी का कहाँ चलता है ,
इसमें दिल का क्या कसूर था।
दिल के दरवाज़े तो कबसे खुले रखे थे हमने,
तूने दर ही बदल दिया,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
जीना सिर्फ जीना होता तो जी लेता ज़िन्दगी,
जान भी जब साथ न दे ,
इसमें मौत का क्या कसूर था।
तेरी झुकी नज़र के दीवाने से हम हो गए थे,
तेरी नज़र किसी और से मिली,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
पलकों पे सपने लेके निकल पड़ा था गलियों में,
राहों में भटक गया,
इसमें मंज़िलों का क्या कसूर था।
इंतज़ार रहता था हर पल तेरी खुशबु के आने का,
हवाओं ने रुख ही बदल दिया,
इसमें मेरा क्या कसूर था।
पाने को तुझको मैंने रब से कितनी फरियाद लगाई,
मिलकर भी हो न पाई तू मेरी,
इसमें दुआओं का क्या कसूर था।
सोच में अपनी तुझे कबसे अपना बना बैठे थे,
पूरी न हुई ख्वाहिश ,
इसमें इरादों का क्या कसूर था।
कर गया था वादा कि रोज़ तेरे सपनो में आउंगा,
कम्भख्त नींद न आई,
इसमें ख्वाबों का क्या कसूर था।
दुनिया तो हमसे रूठ गई थी, बस तेरे प्यार का आसरा था,
तूने भी साथ छोड़ दिया,
इसमें अरमानो का क्या कसूर था।
तेरे प्यार के झरने में बहता ही चला गया,
तैरना मुझे न आया,
इसमें पानी का क्या कसूर था।
हर पल हर लम्हा पास था तेरे मै ,
तू ही न समझ पाई,
इसमें नज़दीकियों का क्या कसूर था।
कसूर... कसूर... इसमें मेरा क्या कसूर था....।
.
- मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मेरी कोशिश को सराहने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद् coontee mukerji जी।
कवि की अपनी स्थिति, अवस्था, और समय का बहुत ही सुंदर चित्रण.हर इंसान के जीवन में यौवनकाल आता है....उसकी अपनी मानसिक अवस्था, प्रेम निमंत्रण,निवेदन,आशा-निराशा सब अवस्था से उसे पार होना पड़ता है...यथा..
.पाने को तुझको मैंने रब से कितनी फरियाद लगाई,
मिलकर भी हो न पाई तू मेरी,
इसमें दुआओं का क्या कसूर था।.....सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online