For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुस्ताख निगाहें भी पहली नज़र में फिसल गई ,
जी भर के देख भी न पाया ,
इसमें मेरा क्या कसूर था।

नादान दिल के कदम भी लड़खड़ाते-लड़खड़ाते संभल गए ,
दूरी मै  तय न कर पाया ,
इसमें राहों का क्या कसूर था।

चंद लम्हा भी तेरे बिन रेह न सका, तेरे प्यार में इतना मजबूर हुआ ,
वक़्त ने हरकत ऐसी ली,
इसमें मेरा क्या कसूर था।

रूबरू हुआ जब तुझसे मै, मुझपे सवार तेरा फितूर हुआ ,
ज़ोर किसी का कहाँ चलता है ,
इसमें दिल का क्या कसूर था।

दिल के दरवाज़े तो कबसे खुले रखे थे हमने,
तूने दर ही बदल दिया,
इसमें मेरा क्या कसूर था।

जीना सिर्फ जीना होता तो जी लेता ज़िन्दगी,
जान भी जब साथ न दे ,
इसमें मौत का क्या कसूर था।

तेरी झुकी नज़र के दीवाने से हम हो गए थे,
तेरी नज़र किसी और से मिली,
इसमें मेरा क्या कसूर था।

पलकों पे सपने लेके निकल पड़ा था गलियों में,
राहों में भटक गया,
इसमें मंज़िलों का क्या कसूर था।

इंतज़ार रहता था हर पल तेरी खुशबु के आने का,
हवाओं ने रुख ही बदल दिया,
इसमें मेरा क्या कसूर था।

पाने को तुझको मैंने रब से कितनी फरियाद लगाई,
मिलकर भी हो न पाई तू मेरी,
इसमें दुआओं का क्या कसूर था।

सोच में अपनी तुझे कबसे अपना बना बैठे थे,
पूरी न हुई ख्वाहिश ,
इसमें इरादों का क्या कसूर था।

कर गया था वादा कि रोज़ तेरे सपनो में आउंगा,
कम्भख्त नींद न आई,
इसमें ख्वाबों का क्या कसूर था।

दुनिया तो हमसे रूठ गई थी, बस तेरे प्यार का आसरा था,
तूने भी साथ छोड़ दिया,
इसमें अरमानो का क्या कसूर था।

तेरे प्यार के झरने में बहता ही चला गया,
तैरना मुझे न आया,
इसमें पानी का क्या कसूर था।

हर पल हर लम्हा पास था तेरे मै ,
तू ही न समझ पाई,
इसमें नज़दीकियों का क्या कसूर था।

कसूर... कसूर... इसमें मेरा क्या कसूर था....। 

.

 - मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 1230

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by M Vijish kumar on January 2, 2014 at 8:05am

मेरी कोशिश को सराहने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद् coontee mukerji जी।  

Comment by coontee mukerji on January 2, 2014 at 1:05am

कवि की अपनी स्थिति, अवस्था, और समय का बहुत ही सुंदर चित्रण.हर इंसान के जीवन में यौवनकाल आता है....उसकी अपनी मानसिक अवस्था, प्रेम निमंत्रण,निवेदन,आशा-निराशा सब अवस्था से उसे पार होना पड़ता है...यथा..

.पाने को तुझको मैंने रब से कितनी फरियाद लगाई,
मिलकर भी हो न पाई तू मेरी,
इसमें दुआओं का क्या कसूर था।.....सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service