भारत और रेल का जनरल डब्बा
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है,
जनरल के डब्बे में जीकर बचपन रोज पला करता है।
हो चाहे व्यवसाय दुग्ध का,
रोज रोज का ऑफिस जाना,
गल्ला राशन बोरा लेकर,
बेटे तक साइकिल पहुँचाना,
हर एक जरूरत जीवन की इस डब्बे में लेकर विश्राम,
पल पल बढ़ता देश मेरा दुनिया से रोज लड़ा करता है,
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है।
भारत की खुद्दार जवानी,
को खिड़की से लटके देखा,
मंजिल तक जाने की जिद को,
डब्बों की छत पर चढ़ते देखा,
भर्ती में शामिल होना हो करनी हो कोई हड़ताल,
इसी देश का सस्ता जीवन कर में जान लिए फिरता है,
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है।
मूँगफली हो पुड़िआ गुटखा,
चाय समोसा बेंच रहा है,
खेल कूद की आज़ादी को,
क्षुधा अग्नि में झोंक रहा है,
जिम्मेदारी का बोझ लिए इसी जगह भारत का बचपन,
कुछ बनने की उमर में हर दिन घर का पेट भरा करता है,
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है।
चेहरे पर हैं जितनी झुर्री,
उतना माटी के करीब है,
जितने बल पड़ते माथे पर,
उतना खोटा ही नसीब है,
जितनी उम्र नहीं रेलों की उतने कर्मरथी धरती के,
अनगिन सालों का अनुभव डब्बे में पड़ा सड़ा करता है
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
यथास्थिति को पूरी संवेदनशीलता से प्रस्तुत करता एक बहुत सुन्दर सार्थक गीत..
मुख्य पंक्तियाँ ही मन को झकझोर कर जगाने वाला मंज़र प्रस्तुत करती हैं.
प्रवाह बहुत सुन्दर है, पर कहीं कहीं गेयता में अटकाव अवश्य महसूस हुआ, एक दो जगह कथ्य भी कुछ और स्पष्टीकरण की मांग करता है..
इस गीत के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं
आ0 नीरज जी बहुत ही सुंदर , बधाई आपको ।
प्रिय नीरज भाई ओ बी ओ पर आपका स्वागत है बेहद शानदार रचना है भाई पढ़कर आनंद आ गया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
आ. नीरज द्विवेदीजी सही तस्वीर प्रस्तुत की है भारतीय रेल और आम रेल यात्रियों की समस्यायों की । हार्दिक बधाई।
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अच्छी रचना है! आपको हार्दिक बधाई!
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है,
जनरल के डब्बे में जीकर बचपन रोज पला करता है।
हो चाहे व्यवसाय दुग्ध का,
रोज रोज का ऑफिस जाना,
गल्ला राशन बोरा लेकर,
बेटे तक साइकिल पहुँचाना,
हर एक जरूरत जीवन की इस डब्बे में लेकर विश्राम,
पल पल बढ़ता देश मेरा दुनिया से रोज लड़ा करता है,
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है।......रेल के सफ़र का मज़ा ही कुछ और है.......हाँ जिसमें एक पूरा देश एक साथ चलता है प्रथम श्रेणी से लेकर अनारक्षित श्रेणी तक....भाई नीरज जी कवि वहीं जो समाज का प्रतिबिम्ब ऐसा प्रस्तुत करे कि मन खुश भी हो जाय समय का दर्शन भी हो और उस वस्तुस्थिति पर विचार करने पर पाठक मजबूर भी हो जाय....एक सार्थक रचना के लिये बहुत बहुत बधाई.
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