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गज़ल - जाग उठी सड़कें

जाग उठी सड़कें  उन्हें बस  सच बयानी चाहिए

कह  दो  संसद  से  न  कोई   लंतरानी  चाहिए

 

देख तो ! मैं बिक गया उसकी वफ़ा के नाम पर

ऐ  तिजारत ! अब  तुझे  नज़रें  झुकानी चाहिए

 

मैं  बना  दूँ  अपनी पेशानी पे सजदे  की लकीर

तू  बता तुझको  दिलों पर  हुक्मरानी  चाहिए ?

 

धूप  में जलना  पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक

जिद  है बच्चों  की उन्हें  कुछ जाफरानी चाहिए

 

प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख

जिक्र  जब  मेरा  हो  तेरी  बात  आनी  चाहिए

 

कर  खसारा  मैं  भरे  बाज़ार  से  उठने को  हूँ

कह   रहे   हैं   लोग   थोड़ी   बेइमानी  चाहिए

 

मैं भी चुप हूँ तू भी तन्हा सोच मत पत्थर उठा

तु  भी  खुश, मेरे  लहू  को  भी  रवानी  चाहिए
.
.

अरुन श्री !

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 5, 2014 at 8:18pm

 बहुत खूब, एक से बढ़कर एक शेर , हार्दिक बधाई अरुण भाई ।

Comment by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 8:09pm

आ0 अरुण श्रीवास्तव जी , क्या ही सुंदर गजल कही  है बधाई । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 5:11pm

वाह वाह अरुण श्री भाई जी क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने एक एक शेर दमदार बन पड़ा है क्या कहने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by vijay nikore on January 5, 2014 at 10:52am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 5, 2014 at 7:16am

आदरणीय अरुण भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ॥

मैं  बना  दूँ  अपनी पेशानी पे सजदे  की लकीर

तू  बता तुझको  दिलों पर  हुक्मरानी  चाहिए ?

प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख

जिक्र  जब  मेरा  हो  तेरी  बात  आनी  चाहिए

मैं भी चुप हूँ तू भी तन्हा सोच मत पत्थर उठा

तु  भी  खुश, मेरे  लहू  को  भी  रवानी  चाहिए ------------ वाह वाह भाई जवाब नही ॥ क्या बात कही ॥

Comment by vandana on January 5, 2014 at 6:37am

धूप  में जलना  पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक

जिद  है बच्चों  की उन्हें  कुछ जाफरानी चाहिए

वाह आदरणीय अरुण श्रीवास्तव जी बेहतरीन ग़ज़ल एक से बढ़कर एक शेर 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 4, 2014 at 10:33pm

देख तो ! मैं बिक गया उसकी वफ़ा के नाम पर

ऐ  तिजारत ! अब  तुझे  नज़रें  झुकानी चाहिए !   वाह क्या बात है  !!

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है भाई ! बधाई  !!

Comment by ajay sharma on January 4, 2014 at 10:12pm

obo ki ab tak ki umda rachnayo me iska shumari hona chahiye ......matle ke sher se lekar akhiri sher tak lajabab kar diya .......bhai ...........bahut bahut .......shubh kamnayen.............. 

Comment by Saarthi Baidyanath on January 4, 2014 at 9:51pm

मैं  बना  दूँ  अपनी पेशानी पे सजदे  की लकीर

तू  बता तुझको  दिलों पर  हुक्मरानी  चाहिए ?...क्या कहने 

 

धूप  में जलना  पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक

जिद  है बच्चों  की उन्हें  कुछ जाफरानी चाहिए...उम्दा है अरुण साहब 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 4, 2014 at 8:26pm

धूप  में जलना  पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक

जिद  है बच्चों  की उन्हें  कुछ जाफरानी चाहिए

 

बहुत कमाल का शेर हुआ , दिली दाद कुबूल करें आदरणीय अरुण श्री ji

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