For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वप्न और यथार्थ...

थाम के मैं हाथ तेरा चल पड़ी सपनों के नगर ..

एक अनजाना सा घर, एक  अनजानी डगर ..

ठान के ,हूँ साथ तेरे,कितना भी हो कठिन ये सफ़र..

पार भव कर ही लेंगे साथ मेरे तुम हो अगर..

 

छोड़ना मत हाथ मेरा तुम कभी वो हमसफ़र..

प्यार से सजाएंगे हम अपना ये प्रेम नगर..

करना नज़रंदाज़ मेरी गलती हो कोई अगर..

कोशिश तो बस ये मेरी, नेह में न हो कोई कसर..

आह! लेकिन ये क्या किया? क्यों तुमने मुझे त्याग दिया ?

चंद रुपयों के लिए मेरा आग से श्रृंगार किया ?

भूल चले प्रण सभी जो सात फेरों संग किया ?

वो सभी वादे क्या हुए प्रीत में मुझसे था किया ?

 

जा रही हूँ ,जाओ तुम्हे माफ़ किया ..

अब मैंने तुम्हे क्या, सभी कुछ त्याग दिया ..

जी लो अपनी तरह, मैंने तुम्हे मुक्त किया ..

वो संवेदन हीन पशु , जाओ तुम्हे मुक्त किया ..


Views: 360

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Lata R.Ojha on February 9, 2011 at 10:02am
धन्यवाद राकेश जी
Comment by Lata R.Ojha on February 2, 2011 at 5:57pm
धन्यवाद अजय कुमार सिंह जी :)
Comment by Lata R.Ojha on January 31, 2011 at 8:58pm
धन्यवाद आशीष यादव जी,,आर.एन.तिवारी जी  और नवीन जी  ..
Comment by R N Tiwari on January 31, 2011 at 10:13am
विकृत समाज के बीभत्स रूप का दर्शन कराती एक मर्मस्पर्शी रचना.  बहूत बहूत धन्यवाद.
- आर .  न .तिवारी
Comment by आशीष यादव on January 31, 2011 at 7:53am
बहुत मार्मिक एवं सत्य रचना| ह्रदय स्पर्शी|
Comment by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 11:19pm
धन्यवाद गणेश भाई और अरुण कुमार पांडे जी .सच में ये समाज का घिनौना सच है जो हर नवयुवती के मन में डर बन के रहता है.
Comment by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:33pm
दिल को छू लेने वाली रचना ! बहुत मर्मस्पर्शी !!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 30, 2011 at 8:33pm
लता जी, क्या कहे इस पोस्ट पर, बहुत ही मार्मिक रचना है, समाज का एक घिनौना रूप दिखाती यह रचना सभ्य समाज पर झन्नाटेदार तमाचा है | एक सवाल यह पैदा होता है कि क्या हम सच मे सभ्य हो गये है, एक तरफ तो प्राण से भी ज्यादा प्यार करने वाली जीवन साथी और दुसरे तरफ चंद रुपये के खातिर किसी का जीवन छीन लेना क्या यही सभ्य समाज है | सब मिलाकर एक बेहतरीन रचना | बहुत बहुत बधाई लता जी इस बेहतरीन अभिव्यक्ति हेतु |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service