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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अजय जी, आदेर्नीया कुंती जी ..आपके उत्साहवर्धन के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..बिलकुल सही तथ्य पर ध्यान दिलाया अपने ..इस ग़ज़ल के कुछ शेर मैंने इसलिए हटा दिए थे की ठीक करके जोड़ दूंगा लेकिन गलती वश इन्हें नहीं हटा सका .संशोधन होने के बाद ही इन्हें जोडूंगा..बहुत बहुत धन्यवाद मुझे मेरी खता से परिचित करने के लिए ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर
पीना न तुम शराब ये आदत ख़राब है
कहती है हर किताब ये आदत ख़राब है .....बहुत खूब.
आदरणीय , आशुतोष भाई , सुन्दर गज़ल के लिये बधाई !!
आदरणीय ग़ज़ल के कुछ शे र बिना काफिये के रह गये है , गज़ल के खारिज हो रहे हैं ॥
खामोश रहिये आज तो रिन्दों की बज्म में
भूले से भी न कहना ये आदत ख़राब है
जब हुश्न के नशे में मय का भी नशा मिला
किसको रहा था याद ये आदत ख़राब है ------------ दोनो शेर को फिर से देख लीजिये
पीना न तुम शराब ये आदत ख़राब है
कहती है हर किताब ये आदत ख़राब है
मुफलिस को भी नवाब जो पल भर में बना दे
उसको जहर ख़िताब ये आदत ख़राब है
बदनाम कर दिया है खुद तुमने शराब को
पीते हो बेहिसाब ये आदत ख़राब है
इक घूँट जिसने पी कभी कैसे कहे बुरा
हरगिज न हो जवाब ये आदत ख़राब है ..... अच्छे अशआर
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