आदि बेटे, मैं बहू को लेकर अस्पताल जा रही हूँ साथ में रंजना (बेटी) और अदिति ( पोती) भी। तुम गुरूजी को लेकर वहीं आओ।
आइये गुरूजी, प्रणाम। पोती के जन्म के समय आपने पूरा समय दिया था इस बार भी.......।
ठीक है मैया, मिठाई खाकर ही जाऊँगा। बहू को आशीर्वाद देते हुए - चिंता मत करो बेटी श्रीराधेकृष्ण की कृपा से इस बार भी सब कुछ सामान्य और सुखद होगा। हर समय बस उसे याद करते रहना।
सभी वेटिंग कक्ष में खामोश बैठे थे। कुछ देर बाद नर्स खबर लाई, सुंदर स्वस्थ गोरी बिटिया हुई है, बधाई।
सुनते ही सबका चेहरा उतर गया, कुछ देर के लिए एक खामोशी सी छा गई।
गुरूजी ये क्या हुआ ? आपने ही कहा था इस बार पोते की दादी बनूँगी, इसलिए हमने ........।
मुझे मालूम था, आप सभी पर कन्या भ्रूण हत्या का पाप न लगे इसलिए मुझे झूठ का सहारा लेना पड़ा। मैया ईश्वर की कृपा को खुश होकर स्वीकार करो। इस शुभ निर्णय और शुभ अवसर पर भाई साहब की आत्मा भी हम सब को आशीर्वाद दे रही है। मेरी बात पर विश्वास करो और इस बंद लिफाफे को खोलकर पढ़ो। लिखा था.......
# इस बार भी कन्या होगी, हाँ तीसरी संतान के रूप में पुत्र का प्रबल योग है # स्नेहाशीष .... गुरूजी ।
भीगी पलकों से गुरुजी को सादर प्रणाम करते हुए -- आप इस परिवार के ' संकट मोचन ' हैं गुरुजी, आपने हमे कन्या भ्रूण हत्या के जघन्य अपराध से बचा लिया॥
बेटे की ओर देखकर, आदि तुम अब तक यहीं हो, मालूम है न गुरूजी को रसगुल्ले बहुत पसंद हैं।
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-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
विवेकानंदनगर, धमतरी (छत्तीसगढ़)
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीया प्राचीजी ,
यह मेरा प्रथम प्रयास है शायद कथा कुछ लम्बी हो गई । लघु कथा के संबंध में आवश्यक जानकारी एवं सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद और आभार।
छोटे भाई गिरिराज, लघु कथा को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
बहुत अच्छा सन्देश देती लघुकथा, बधाई स्वीकारें आदरणीय अखिलेश जी
आदरणीय अखिलेश जी
बहुत सार्थक सामाजिक कथानक है आपकी लघुकथा का... संकट मोचन गुरूजी नें अवश्य ही कन्याभ्रूढ़ ह्त्या के पाप से बचाया.
किन्तु शिल्प के स्तर पर ये कहानी अभी बहुत गुंजाइश रखती है..
लघुकथा की एक खासियत होती है..उसमे एक भी शब्द ऐसा नहीं होना चाहिए जिसे हटाने की गुंजाइश हो..और न ही किसी शब्द की कमी महसूस होनी चाहिए. अनावश्यक डीटेल्स से बचते हुए कम से कम शब्दों में सांद्रता के साथ कथानक प्रस्तुत करना चाहिए.
जैसे पहली ही पंक्ति में बेटी रंजना और पोती अदिति के डीटेल्स और नामों की आवश्यकता नहीं थी.
जैसे सभी वोटिंग कक्ष में खामोश बैठे थे....आदि पंक्तियों के बिना भी कथा पूर्ण है.
बाकी लघुकथा विशेषगज्ञ अवश्य ही अपनी राय देंगे.
सादर.
आदरनीय बड़े भाई , बेटी बचाओ आन्दोलन को सार्थक करती आपकी सुन्दर सन्देश देती लघुकथा के लिये आपको बधाइयाँ ॥
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