For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"हाउसवाइफ कहलाने में शर्म क्यूँ ? यह तो गर्व की बात है"

विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत महिलाएं जिस तरह बड़े-बड़े पैकेज (हज़ारों ,लाखों में ) ले रही हैं उसे देख अधिकतर महिलाएं खुद को बहुत नीचा या कमतर समझती है  जब उनसे पूछा जाता है कि वे क्या करती हैं ........और शर्म महसूस करती हैं.यह बताने में कि वे केवल हाउसवाइफ हैं .

यह इसलिए कि हाउसवाइफ का मतलब अक्सर यह समझा जाता है कि या तो वह घर में चूल्हा-चौका करती है या फिर सिर्फ किट्टी पार्टियों में अपना समय व्यतीत करती हैं ....... जबकि वास्तविक स्थिति इसके बिलकुल विपरीत होती है ...अधिकांश महिलाएं अपना समय अगली पीढ़ी यानि अपने बच्चों की परवरिश और अपने परिवार की देख रेख में बिताती हैं .

बहुत पहले लगभग अठारह वर्ष पहले जब मैंने अपनी लगी बंधी पी जी टी अध्यापिका की नौकरी छोड़ी तो बहुत से लोगों ने (मेरी माँ ने भी ) कहा ''इतनी पढ़ाई -लिखाई करके घर में  बैठने का क्या फायेदा ...कुछ जॉब करती रहती तो पति की तनख्वा में इज़ाफा होता '' .यह बात आज भी ज़हन को कचोटती कुरेदती रहती है....क्या सिर्फ नौकरी करने वाली महिलायें ही घर में आय का अतरिक्त स्त्रोत होती हैं ??????? 
आपका क्या सोचना है ? 

अगर मुझसे पूछें तो ......मैं कहूँगी कि प्रत्यक्ष आय की अपेक्षा अप्रत्यक्ष आय जो कि एक हाउसवाइफ द्वारा अर्जित की जाती है वह कई मायनों में बेहतर होती है ..... घर की व्यवस्था व् सञ्चालन के साथ-साथ बच्चों का लालन -पालन ..उनके संस्कार .....अपने ही निरिक्षण में उनकी पढ़ाई ( प्राइवेट ट्यूशन की अपेक्षा ) ... कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है तथा कहीं ज्यादा बचत भी कराती  है ....एक तरह से यह निवेश है भविष्य को सँवारने के लिए 


चलिए परिवार के लिए किये गए कार्यों को एक तरफ़ रख कर खुद महिला के व्यक्तित्व के बारे में सोचें .......... .तो पायेंगे कि अगर महिला चाहे तो घर में रह कर सभी कार्यों के साथ वह खुद को निखार सकती है अपने पसंदीदा क्षेत्रों में ...अपनी रूचि अनुसार वह अपने को पारंगत कर सकती है गर परिवार का साथ मिले........... जोकि काफी हद तक असंभव नहीं तो मुश्किल तो होता ही है एक फ़ुल टाइम नौकरी के साथ .

इसका एक उदाहरण यूँ दिया जा सकता है ......... स्कूल के अध्यापक -अध्यापिकाएं अधिकतर ....सिलेबस/पाठ्यक्रम  ख़त्म कराने के क्रम में यह पूर्णतया भूल जाते हैं .कि उनका पढ़ाया हुआ बच्चों के दिमाग में भी जा रहा है या नहीं ......पढ़ाई के अतिरिक्त बच्चे के व्यक्तित्व का चहुमुखी विकास हो रहा कि नहीं ........ और ध्यान दें भी तो कैसे ... तेज रफ़्तार से बस एक ध्येय के साथ आगे बढ़ते जातें हैं कि समय सीमा में सिलेबस पूरा हो जाये ....और विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाए ...........चाहे फिर उसमे किसी और प्रतिभा का विकास हो न हो .

उच्च ओहदे पे आसीन होने से आय तो अधिक होती है बेशक  ..........किन्तु उसके लिए कितनी ही महत्वपूर्ण बातों की अनदेखी की जाती हैं ...इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है .......यहाँ मेरे कथन को अन्यथा न लें कि मैं कामकाजी महिलाओं के विरोध में कुछ कह रही हूँ


नौकरी न करते हुए भी एक पढ़ी लिखी महिला  परिवार और अपने लिए बहुत कुछ करती है ..और कर भी सकती है ...जो आर्थिक योगदान के साथ मानसिक, समाजिक स्तर पे हो सकता है .....समय का सदुपयोग करते हुए उच्च शिक्षा लेने में शर्माना नहीं चाहिए ...हाँ सास -बहु के सीरियल्स को छोड़ कर टी वी/ प्रिंट मीडिया के द्वारा खुद को अप-डेट रखने का प्रयास करना चाहिए ......अपने भीतर के सृजनात्मक पक्ष को खोज कर उन्हें तराशने की कोशिश करनी चाहिए ......

इसके साथ साथ पुरुष को भी चाहिए कि वह इस उदासीन मानसिकता से बाहर निकले कि 'उसकी पत्नी कुछ नहीं करती' ...और आगे बढ़ के बिना यह सोचे कि वह जोरू का गुलाम है  अपनी सहभागिनी के  सृजनात्मक पक्ष को मजबूत करने में सहयोग देना चाहिए .

आज जीवन के इस पढाव पे जब मैं अपने को और अपने परिवार को देखती हूँ तो मुझे रत्ति भर भी अफ़सोस नहीं होता कि मैंने नौकरी छोड़कर हाउसवाइफ बनने का निर्णय लिया था  .......

पूनम माटिया 'पूनम' ( "मौलिक और अप्रकाशित")

Views: 1942

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2014 at 8:46pm

आज जीवन के इस पढाव पे जब मैं अपने को और अपने परिवार को देखती हूँ तो मुझे रत्ति भर भी अफ़सोस नहीं होता कि मैंने नौकरी छोड़कर हाउसवाइफ बनने का निर्णय लिया था  ....... आदरणीया पूनम जी , बहुत सुन्दर सार्थक बात कही है ॥ सफल हाउस वाइफ होना सफल कर्मचारी होने से किसी भी मायने मे कम नही है । इस विचार के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Poonam Matia on January 15, 2014 at 7:58pm

ओ बी ओ का आभार ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service