तुम क्या जानो जी तुमको हम
कितना 'मिस' करते हैं...
तुम्हे भुलाना खुद को भूल जाना है
सुन तो लो, ये नही एक बहाना है
ख़ट-पद करके पास तुम्हारे आना है
इसके सिवा कहाँ कोई ठिकाना है...
इक छोटी सी 'लेकिन' है जो बिना बताये
घुस-बैठी, गुपचुप से, जबरन बीच हमारे
बहुत सताया इस 'लेकिन' ने तुम क्या जानो
लगता नही कि इस डायन से पीछा छूटे...
चलो मान भी जाओ, आओ, समझो पीड़ा मेरी
अपने दुःख-दर्दों के मिलजुल गीत बनाएं
सुख-दुःख के मलहम का ऐसा लेप लगाएं
कि उस 'लेकिन' की पीड़ा से मुक्ति पायें...
----------------अ न व र सु है ल -----------
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
भावपूर्ण इस रचना के लिये बधाई आदरणीय सुहैलजी
आपके कहने का अंदाज़ बदला हुआ सा लग रहा है. यह भी सही.
बढिया है.
सादर
चलो मान भी जाओ, आओ, समझो पीड़ा मेरी
अपने दुःख-दर्दों के मिलजुल गीत बनाएं
सुख-दुःख के मलहम का ऐसा लेप लगाएं
कि उस 'लेकिन' की पीड़ा से मुक्ति पायें.......बहुत सुंदर..बधाई अनवर जी.
वाह !! बहुत सुंदर रचना हेतु बहुत बधाई स्वीकारें आ0 सुहैल जी ।
चलो मान भी जाओ, आओ, समझो पीड़ा मेरी
अपने दुःख-दर्दों के मिलजुल गीत बनाएं
सुख-दुःख के मलहम का ऐसा लेप लगाएं
कि उस 'लेकिन' की पीड़ा से मुक्ति पायें....................... बहुत सुन्दर आ० अनवर जी | बधाई
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