जीवन दर्शन पर ३ मुक्तक :
1.है पानी का बुलबुला ....
है पानी का बुलबुला ....ये जीवन तेरा जीव
बड़े भाग से मानव का ...मिला तुझे शरीर
आती जाती साँसों का ...नहीं कोई विश्वास
आत्म सुख के वास्ते हर ले किसी की पीर
2.मूर्ख मानव काया पे …
मूर्ख मानव काया पे ....तू काहे करे गुमान
नश्वर इस संसार में .....व्यर्थ है अभिमान
जान के भी अंजाम को क्योँ बनता अंजान
तू माया की नगरी में पलभर का मेहमान
3.जन्म मरण तो चक्र है ....
जन्म मरण तो चक्र है और चक्र है बेअन्त
इस जीवन का दोस्तों कहीं आदि है न अंत
हाड मांस के पिंजर ने मिट जाना इक दिन
मोह माया में उलझ कर भूल न प्रभु का पंथ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अरुण शर्मा 'अनन्त ' जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील सर तीनो मुक्तक सार्थक लिखे हैं सच बयानी की है आपने इस हेतु बधाई स्वीकारें. प्रवाह में थोड़ी कमी खटकी.
आदरणीय सुशील भाई , जीवक की नश्वरता साबित करते आपके मुक्तक बहुत सुन्दर लगे , आपको रचना के लिये बधाई ॥
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