मुहब्बतों के पैगाम .....
ये मुहब्बत भी
अजब शै है ज़माने में
उम्र गुज़र जाती है
समझने और समझाने में
कब हो जाती हैं सांसें चोरी
खबर ही नहीं होती
बरसों नहीं आती नींद
उनके इक बार मुस्कुराने में
डूबे रहते हैं पहरों
इक दूसरे के ख्यालों में
जाने गुज़र जाती शब् कैसे
इक दूसरे से बतियाने में
शब् जाती है तो
सहर आ जाती है
सहर क्या आती है
संग कहर ले आती है
वो लम्हे अंगार बन जाते है
जो संग शब् के गुज़र जाते हैं
राहे मुहब्बत में
कुछ ऐसे भी मुकाम आते हैं
जब दो जिस्म इक जान हो जाते हैं
इक दूसरे में फना
हर सांस हो जाती है
मख़मली अहसासों में
न हस्ती होती है
न नाम होते हैं
थरथराते लबों पे बस
मुहब्बतों के पैगाम होते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर आपकी स्नेहाशीष का हार्दिक आभार । कृपया अपना स्नेह बनाये रखें। क्षमा चाहता हूँ नेट ठीक न होने के कारण मैं आपका आभार समय पर व्यक्त नहीं कर पाया। धन्यवाद
मुहब्बत को शब्द देने की कोशिश हुई है, आदरणीय,
हार्दिक धन्यवाद.. .
आदरणीय बृजेश नीरज जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
सुन्दर रचना आदरणीय! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय शिज्जू शकूर साहिब रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील सर इस गीत के लिये बधाई स्वीकार करें
आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त ' जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार
आदरणीय प्रियंका सिंह जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील सर प्रेम रस में डूबी सुन्दर पंक्तियाँ प्रेम मिलन और विरह में होने वाले उतार चढाव को सुन्दरता से पिरोया है आपने. मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.
सुन्दर रचना ....खूब पिरोया अपने भावों को शब्दों में ....बधाई सर .....
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