उसका रुमाल …..
टप,टप
टप,टप
अंधेरी रात का
गहरा सन्नाटा
बारिश के बाद
पेड़ों से गिरती बूंदों के
जमीन पर गिरने की आवाजें
सन्नाटे को तोड़ने का
अनवरत प्रयास कर रही थीं
और साथ ही प्रयास कर रही थी वो
अनगिनित बारिशों में
भीगी रातों की भीगी यादें
कहर ढाती बारिश का
तूफ़ान तो रुक जाता है
लेकिन तबाही का मंजर
दूर तक साथ जाता है
जाने सावन को
बीती यादों के साथ
बरसने में क्या मिलता है
खिड़की पर बैठी
सडक पर बहते पानी में
रोड लाईट की
झिलमिल करती परछाई में
पीछे छूटे पलों में
खुद को ढूंढ रही थी
वो स्पर्श,वो एहसास
वो साथ साथ जीने का विश्वास
क्षण भर में
जाने कहाँ खो गया
और मैं
खड़ी की खड़ी
देखती रह गयी
आँखों में सूनापन देकर जाती
निर्मोही ट्रेन को
उसका बाय बाय करता हाथ
दृष्टि से ओझल हो गया
और रह गया साथ मेरे
बस उसका दिया
एक सफेद गीला रुमाल
जिससे उसने कभी
मेरे अश्कों को
गालों पर आने से रोका था
रुमाल में लिपटी स्मृति
मेरी पलकों से आज
द्वन्द कर रही है
न जाने क्यूँ
अभी भी इस दिल को
उसके आने की आस बाकी है
उसका रुमाल मेरे अश्क पोंछेगा
ये विश्वास बाकी है,
ये विश्वास बाकी है,…….
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
aa.Dr.Prachi Singh jee main apkee baat se sahmat hoon isse rachna men nikhaar adhik aayega....aapkee is smeekshaatmak pratikriya ne jo mera utsaahvardhan kiya hai uske liye main hridy se aapka aabhaaree hoon....privaar men kuch apriy ghtna hone ke kaaran main aapko pratutar n de ska, iske liye main kshma prarthee hoon..apna sneh bnaaye rakhain
aadrneey Sourabh Pandey jee rachna par aapkee aatmeey pratikriya ne mujhmen utsaah ka sanchaar kiya hai...aapkee baat se sahmat hoon ....Sir parivaar men kuch apriy ghatna hone se se main aapko jwaab n ska, iske liye main kshma prarthee hoon. aapke sahyog ka haardik aabhaar.apna sneh isee trah se bnaaye rakhain . dhnyvaad
आदरणीय सुशील सरना जी
अभ्यास के क्रम में एक सुन्दर रचना हुई है...हार्दिक शुभकामनाएं
आ० सौरभ जी के सुझाव से सहमत हूँ , कि
टप,टप
टप,टप
अंधेरी रात का
गहरा सन्नाटा
बारिश के बाद
पेड़ों से गिरती बूंदों के
जमीन पर गिरने की आवाजें..............................इस तरह से न लिखा जाए और बूंदों की ध्वनि को यहाँ अंत में स्थान मिले
जैसे,
अंधेरी रात का
गहरा सन्नाटा
बारिश के बाद
पेड़ों से गिरती बूंदों के
जमीन पर गिरने की आवाजें
टप-टप..
टप-टप .........................इस तरह से कविता प्रस्तुत हो तो बारिश की ध्वनि सही स्थान पर ज्यादा प्रभावोत्पादक रहेगी
//यहाँ पर आपका कथन है कि टप टप की ध्वनि यहाँ भी होनी चाहिए थी किन्तु महोदय ये आवाज़ें ऊपर वाली ध्वनि का ही प्रतिनिधित्व कर रही हैं सो यहाँ उसके पुनः प्रयोग का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता //
आपने, आदरणीय, या तो मेरे कहे का अर्थ नहीं समझा या मैं स्पष्ट रूप से लिख नहीं पाया.
मेरा कहना यह था कि ऊपर लिखे टप-टप/टप-टप को वहाँ न लिख कर नीचे उन पंक्ति समूह के बाद लिखना उचित होता. ताकि शब्दों की भाव के अनुसार व्यवस्था बनी रहे.
बहरहाल, आप निरंतर अभ्यास कर रहे हैं, और मेरे कहे के ऊपर आपका अनवरत ध्यान है यही मेरे लिए अधिक महत्त्व का है. हम इस मंच पर इसी तरह आपसी संवाद में बहुत कुछ सीखते और साझा करते हैं.
सादर
aa.Brijesh Neeraj jee rachna par aapke sneh ka haardik aabhaar...aapka atkaav sahee hai...aik pankti chhoot gayee thee...स्मृति पटल पर अमिट .....atah kshma ...kripya sneh bnaaye rakhain
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, सादर नमस्कार -- रचना की गहन समीक्षा हेतु मैं तहे दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। अपने भावों पर आपकी समीक्षात्मक छैनी की चोट से ही मैं अपनी रचना को सही रूप देने में समर्थ हो सकता हूँ। आपने समय निकाल कर इस पर अपनी पैनी दृष्टि से जो समीक्षा की है वो मेरे अगले कदम के लिए अमूल्य है। सर आप की समीक्षा पर मेरे विचार निम्न प्रकार से हैं :
टप,टप
टप,टप … यहाँ टप टप का प्रयोग मात्र बारिश के बाद गिरती बूंदों की ध्वनि को दर्शाने का है … पुनरावृति से आशय मात्र बूंदों के अनवरत गिरने के क्रम को दर्शा कर वास्तविकता अहसास कराने से है … क्या ये अनुचित है … ?
अंधेरी रात का
गहरा सन्नाटा
बारिश के बाद
पेड़ों से गिरती बूंदों के
जमीन पर गिरने की आवाजें
………… यहाँ पर आपका कथन है कि टप टप की ध्वनि यहाँ भी होनी चाहिए थी किन्तु महोदय ये आवाज़ें ऊपर वाली ध्वनि का ही प्रतिनिधित्व कर रही हैं सो यहाँ उसके पुनः प्रयोग का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता … इसके अतिरिक्त रचना में इसके आगे की पंक्तियाँ पूरे क्रम को स्पष्ट कर रही हैं अतः मेरे विचार में क्षमा सहित यहाँ इस ध्वनि का प्रयोग फिर से करना न्यायसंगत नहीं होगा।
सन्नाटे को तोड़ने का
अनवरत प्रयास कर रही थीं
और साथ ही प्रयास कर रही थी वो
… यहाँ आपका कथन बिलकुल सही है ये पंक्ति अधूरी है न जाने कैसे इसके आगे की पंक्ति चूक गयी जो ये थी .... इसके लिए क्षमा
(स्मृति पटल पर अमिट )
अंतिम पंक्ति की पुनरावृति का कोई ख़ास अभप्राय नहीं था बस जैसे आम बोलचाल में रचना समाप्त करने पर अंतिम पंक्ति की पुनरावृति कर देते हैं बस वही एक साधारण सा प्रयोग था .... हाँ भविष्य में इसे लेखन में प्रयोग में नहीं लाऊंगा , ये तय रहा।
आपके स्नेह का अत्यंत आभारी हूँ सर कि आपने अपनी समीक्षा से रचना को पुनर्जीवन दिया। आपका हर सुझाव मेरे लिए अनमोल है। कृपया अपना स्नेह बनाये रखें। धन्यवाद
रुमानी खयालों का निर्वहन हुआ है. शाब्दिक भाव तनिक और गहनता चाहते हैं. जैसे,
टप,टप
टप,टप .. इससे क्या आशय है. टप के बाद कॉमा फिर टप और दूसरी पंक्ति में इसकी पुनरावृति.
अंधेरी रात का
गहरा सन्नाटा
बारिश के बाद
पेड़ों से गिरती बूंदों के
जमीन पर गिरने की आवाजें.. . क्या इसके बाद यही टप-टप/ टप-टप न होता ?!
और साथ ही प्रयास कर रही थी वो . ... .. इसके बाद पारा में परिवर्तन भावदशा में परिवर्तन का सू्चक होता. अन्यथा जिस तरह अभी है उससे तो कहीं किसी भाव-पंक्ति के छूट जाने का बोध हो रहा है, मानो आप कुछ कहना या लिखना भूल गये हैं.
प्रयासरत रहें, आदरणीय.
कविता सुनाने की शैली में अंतिम वाक्य का दो दफ़े लिखा जाना अटपटा सा लगता है.
यों, इसे आप अपनी शैली बनाना चाहते हैं तो मैं कुछ नहीं कहूँगा लेकिन वाक्य की पुनरावृतियों के विशेष अर्थ होते हैं .. होने ही चाहिये.
सादर
आदरणीय अच्छी रचना है! आपको हार्दिक बधाई!
आपकी कविता की एक पंक्ति पर अटका हूँ. आप आगे बढने में मदद करें!
//और साथ ही प्रयास कर रही थी वो//...... मैं समझ नहीं पाया- साथ ही क्या प्रयास कर रही थी वो?
aadrneey Aurn Sharma Anant jee rachna par aapkee bhaav bheeni prashansa ka haardik abhaar
aadrneey Baidya Nath Saarthi jee rachna par aapkee madhur prashansa ka haardik aabhaar
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