बह्र : २१२ २१२ २१२
जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई
एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई
रीझ उठी नाचते मोर पे
मोरनी नोच डाली गई
खूब उड़ी आसमाँ में पतंग
जब कटी नोच डाली गई
देव मानव के चिर द्वंद्व में
उर्वशी नोच डाली गई
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी
बहुत बहुत शुक्रिया अरुन शर्मा 'अनन्त' जी। कठिन रदीफ़ केवल एक प्रयोग के तौर पर ले रहा हूँ। आपको ऐसा लगता है कि ठीक से निभा पा रहा हूँ तो इसके लिये तह-ए-दिल से शुक्रिया
बहुत बहुत धन्यवाद Arun Srivastava जी। कृपादृष्टि बनी रहे
आभारी हूँ Sarita Bhatia जी
बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश नीरज जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय तिलक राज जी
बहुत बहुत शुक्रिया Dr.Prachi Singh जी
बहुत बहुत धन्यवाद Baidyanath Saarthi जी
बहुत बहुत शुक्रिया MUKESH SRIVASTAVA जी
ooooooooooofffffffff - kaafile taareef
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