परिचित अपरिचय
गीले भाव, भीगे गाल, स्वप्न रूआँसे
विवेकी-अविवेकी कोषों में बसे
सूक्षमातिसूक्षम खयाल मेरे
रातों तिलमिलाते, क्यूँ ?
गुँथे खयालों से तुम्हारे
अभी बिंधे तुमसे, अभी उलझे मुझमें
सूर्य की किरणों का उल्लास बटोरती
अकेले-अकेले में अपने से सहजतम
तुम भी तो बातें करती नहीं थकती थीं
खयालों की धारा-गति अनचीन्ही
सोच-सोच कर मुझको पगली-सी हँसती ..
आँचल की लहरीली सलवटें शरमा देतीं
पर अब बीच हमारे वह बातें कहाँ
उच्छ्वास भी दुरूहतम
गहन सोच की सोच बढ़ गई है बस
विचारों के ब्रह्माण्ड में असीम बिखराव,
कष्टग्रस्त वेदना, आत्यन्तिक तनाव
सब कविता की पंक्तियों में गिरफ़्तार
बातें ? अब ... कौन-सी बातें ?
हमारी परस्पर दुखती मार्मिक चोट
से परिचित अपरिचय दिखाती
हर मिलने पर हृदय की धड़कन को थामे
तभी तो काँपते ओंठों से कह देती हो बस...
"कहिए"
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विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//'कहिए' में गहन रहस्य समाहित है...समय के साथ उपजी दुरी, सुनकर हुई वेदना में पूर्व प्रगाढ़ सम्बन्ध की कसक आदि।
रचना भली लगी। बधाई आपको इस सफ़ल सम्प्रेषण के लिए।//
"कहिए" में बहुत रहस्य निहित है.... इस मर्म को समझने के लिए और उजागर करने कए लिए धन्यवाद। आपकी सराहना सदैव मन को छू जाती है, आदरणीया वंदना जी।
//दिनोदिन असर खोते जा रहे सम्बन्धों का मार्मिक चित्रण हुआ है//
मेरी रचनाओं में सम्बन्धों के सूक्षम सूत्र देखने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई जी।
दिनोदिन असर खोते जा रहे सम्बन्धों का मार्मिक चित्रण हुआ है, आदरणीय विजयजी.
सादर बधाइयाँ
//कितने गहरे भाव ...जैसे दिल की धड़कने लिख दी अपने शब्दों में और क्या कहूँ प्रेम से भरपूर रचना//
आपने रचना के भावों को इस प्रकार अनुभव किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी।
//बहुत ही गहनतम भाव//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नीरज जी।
रचना की गहराई तक पहुँचने के लिए आपने समय दिया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
रचना के भाव आपको अच्छे लगे, मेरा लिखना सार्थक हुआ।आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।
कितने गहरे भाव ...जैसे दिल की धड़कने लिख दी अपने शब्दों में और क्या कहूँ प्रेम से भरपूर रचना, एहसास महसूस होते है हर बार ......हार्दिक बधाई .....
बहुत ही गहनतम भाव ... हार्दिक बधाई ..
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