For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गहराइयाँ .... (विजय निकोर)

गहराइयाँ

 

 

घड़ी की दो सूइयाँ

काली गहराइयाँ

समय के कन्धों पर

उन्मुक्त

फिर भी बंधी-बंधी

पास आईं, मिलीं

मिलीं, फिर दूर हुईं

कोई आवाज़ .. टिक-टिक

बींधती चली गई

 

था भूकम्प, या मिथ्या स्वप्न

अब वह घड़ी पुरानी रूकी हुई

उखड़े अस्तित्व की छायाओं में

लटक रही है बेजान ।

समय की दीवार

रूकी धड़कन का एहसास ...

और वह सूइयाँ

कोई पुरानी भूली हुई कहानी-सी

पहचाने अपनेपन से दूर

बुझे हुए तारे के टूटे हुए हिस्सों-सी

जैसे तुम और मैं ...

 

यह दरमियानी फ़ासले

घड़ी की दो सूइयाँ

काली गहराइयाँ ...

 

           -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 1, 2014 at 7:49am

//सच में बहुत गहराई है सुन्दर अतीव सुन्दर प्रस्तुति//

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय राम जी। आशा है स्नेह बनाए रखेंगे।

Comment by vijay nikore on March 1, 2014 at 7:47am

//बहुत सुन्दरता से भावों को व्यक्त किया . बहुत बढियां कविता बनी है ..//

इन सुन्दर शब्दों से रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय नीरज जी।

Comment by vijay nikore on March 1, 2014 at 7:45am

//इस गहराई में बहुत गहराई है//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रमेश जी।

Comment by vijay nikore on February 25, 2014 at 8:23am

आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय आशीष जी।

Comment by vijay nikore on February 25, 2014 at 8:19am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी। आप और सौरभ जी से मिले मार्ग-दर्शन के लिए आभारी हूँ।सादर।

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on February 24, 2014 at 10:45am

बहुत सुंदर 

Comment by vijay nikore on February 22, 2014 at 8:15am

//उन्मुक्त फिर भी बंधी-बंधी.....आदरणीय सिर्फ आपकी कलम से ही सम्भव है//

 

जय माँ शारदा ! सब वह लिखती हैं, उनकी देन है। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कुंती जी।

 

Comment by vijay nikore on February 21, 2014 at 8:00am

 

//हर घटना/वस्तु को सूक्ष्मता से देखना और फिर उससे भी सूक्ष्मता से अपने जीवन के यथार्थ से जोड़ना...आपकी कुशल लेखनी का खेल है आदरणीय,जो आपके अंदर के गम्भीर कवि को प्रकाशित करता है।//

आपने मेरी कविताओं के माध्यम मुझको जानने की कोशिश की, और मुझको इतना मान दिया , इसके लिए मैं हृदय तल से आपका आभारी हूँ, आदरणीया वन्दना जी।

Comment by vijay nikore on February 20, 2014 at 7:44am

//जीवन के अतीत और आज को गहरे भाव मिले//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।

 

 

Comment by vijay nikore on February 20, 2014 at 7:42am

//बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति//

रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया अन्नपूर्णा जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"स्वागतम"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"है सियासत की ये फ़ितरत जो कहीं हादसा हो उसको जनता के नहीं सामने आने देना सदर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय पंकज जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय अमित जी  बहुत बहुत शुक्रिया सज्ञान लेने के लिए कोशिश करती हूं समझने की जॉन साहब को भी…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई पंकज जी, हार्दिक आभार।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. रिचा जी, हार्दिक आभार।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई जयनित जी, हार्दिक आभार।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई दिनेश जी, हार्दिक आभार।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, हार्दिक आभार।"
5 hours ago
Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय लक्ष्मण जी ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, शेष अमित जी ने विस्तृत इस्लाह की है। "
5 hours ago
Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-176
"आदरणीय बाग़पती जी अच्छी ग़ज़ल से मुशायरे की शुरुआत के लिए साधुवाद"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service