हमेशा खुशमिजाज रहने वाली माँ को आज गंभीर मुद्रा में देखकर मैनें कारण जानना चाहा तो वो बोली- बेटा तुम भाइयों में सबसे बड़े हो इसलिय तुमसे एक बात करना चाहती हूँ| हाँ-हाँ बोलो माँ मैनें उत्सुकता पूर्वक जानना चाहा|माँ ने दबी आवाज़ में कहना प्रारंभ किया-बेटा तुम्हारा अपना मकान लखनऊ में और बीच वाले का वाराणसी मे बना गया है किंतु तुम्हारा तीसरा भाई जो सबसे छोटा है उसका न तो अपना मकान है और न वो बनवा पायगा कियोंकि वो कम किढ़ा लिखा होंने के कारण अछी नौकरी न पा सका|तो क्या हुआ माँ ये आप और बाबूजी का बनवाया मकान जिसमें छोटा भाई रह रहा है उसी का तो है| मैं बोला| बेटा मैं जानती हूँ तुम दोनों भाई अपने छोटे भाई से बहुत प्यार करते हो इसलिय तुम लोगों से मुझे कोई ख़तरा नहीं है| मैं डरती हूँ तो सिर्फ़ बहुओं से कि कँहि मेरे मरने के बाद वो इस मकान का बँटवारा कर हिस्सा न माँगने लगें| माँ की बात सुन मैं दो पल के लिए मौन हो गया फिर माँ को विस्वास दिलाते हुए उनकी तरफ से एक वसीयतनामा वकील के माध्यम से बनवाकर माँ को सौप दिया जिसमें छोटे भाई को माँ-बाप की सारी संपत्ति पाने का अधिकार प्राप्त हो सके| मगर माँ वसीयतनामे को पढ़कर रोने लगी बोली-इसमें तो लिखा है कि मेरा छोटा बेटा ही मेरी देखरेख करता है बाकी दोनो बड़े बेटे अपने परिवार क साथ अपने मकान में रहते हैं जो कभी-कभी उनसे मिलने आ जाते हैं| मैनें कहा-माँ इसमें रोने की बात नही है ये कोर्ट कचहरी की भाषा है यदि छोटे भाई की तरफ़दारी नही की जाएगी तो उसके नाम सब कुछ कैसे होगा| अच्छा..तो तुम लोग मुझसे नाराज़ नहीं हो माँ ने आँसू पोंछकर अपने तीनों बेटों को गले से लगा लिया|
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
अच्छी लघु कथा है थोड़ा समय और देने से यह और अच्छी हो सकती थी । बहरहाल बहुत बधाई आपको इस लघु कथा के लिए ।
काश के आप जैसा भाई हर घर मे हो नहीं तो पाँव तले जमीं कब खिसक जाय पता ही नही चलता .... बहुत सुन्दर लघुकथा , सादर बधाई आप को
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