क्षण भंगुर जीवन हुआ, जीवन का क्या मोल ।
भज लो तुम भगवान को, क्यों रहे विष घोल ।।
बंद पड़ी सब खिड़कियाँ, चाहे तो लो खोल ।
खुले हुये अंबर तले, कर लो अब किल्लोल ॥
* भामा माया मोहिनी, मोहति रूप अनेक ।
माया माला भरमनी, फंसत नाहीं नेक ॥
*इस दोहे को इस तरह भी देखें :-
ऐसी माया मोहिनी मोहती रूप अनेक ।
केवल माला फेर के कोई न बनता नेक ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
जितना आप बतायीं उतना हम सभी जानते हैं .. लेकिन दोहा कैसे कह रहा है उसे भी देखना जरूरी है न ..
सादर
आदरणीय सौरभ जी यह जो सुंदर मनुष्य जीवन हमे मिला है इसका सदुपयोग करने की बात दोहे चौथे चरण मे परिलक्षित होती है इसी लिए जीवन को अनमोल कहा है । बाकी आप जैसा आदेश करें । सादर
दोहा पर बहुत सधा हुआ प्रयास हो रहा है आदरणीय.. बधाई..
कथ्य को भी तार्किक करना उचित होगा. जैसे, भज तो लें हम भगवान को लेकिन जीवन के अनमोल होने से उसका क्या सम्बन्ध है ? और, इसी छंद का पहला पद तो कुछ और ही कहता है !
यही कुछ कहना चाह रहा हूँ.
सादर
आदरणीय नीरज कुमार जी , आ0 जितेंद्र जी एवं आ0 कुंती दीदी आप सबका हार्दिक आभार ।
सुंदर दोहे.....अन्नपूर्णा जी.हार्दिक बधाई.
सुंदर सात्विक दोहों पर बधाई आपको आदरणीया अन्नपूर्णा जी
बहुत सुन्दर दोहे बधाई ..
आ0 बृजेश जी मोहति = लुभाती , मतलब अनेक तरह से लुभाती है । सादर
अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
पहले दोहे के दूसरे और चौथे चरण के सन्देश विरोधाभासी हैं!
'मोहति' शब्द का अर्थ बताने का कष्ट करें!
आ0 पवन जी , आ0 गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार ।
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