राज आप का आप पर, पूछ रहे है लोग
नेताजी क्या आप ने,किया उचित उपयोग ?
किया उचित उपयोग,लगा क्या जन को ऐसा
जनता करती आस, दिया क्या शासन वैसा.
होती है पहिचान, भला करे जब आम का
जन का हो कल्याण, तभी है राज आप का |
(2)
सुरसा से ये फैलते, प्रचलित बहुत रिवाज
जीना कुंठित कर रहे, छोड़ न पाय समाज |
छोड़ न पाय समाज, कर्ज में निर्धन डूबे
खिलावे म्रत्यु भोज, प्रतिष्ठा के मनसूबे
स्वार्थ के वशीभूत, भोज का बाँटे पुरसा
अंध विश्वास मान बढाते जैसे सुरसा ||
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपके दिए गए सुझाव पर कितना अमल हो पाया, निम्न संशोधन का वलोकन कर बातावे आदनिया डॉ प्राची जी -
राज सफल क्या आप का, पूछ रहे है लोग
नेताजी क्या आप ने,किया उचित उपयोग ?
किया उचित उपयोग,लगा क्या जन को ऐसा
जनता करती आस, दिया क्या शासन वैसा.
बनती तब पहिचान, करे जन के काज सकल
जन का हो कल्याण,तभी समझो राज सफल |
क्या अब छंद रचना उपरोक्तानुसार संशोधन हेतुं ठीक है | सादर
आ० लक्ष्मण जी गुरु जी अगर नाराज हो गए तो अपनी फीस के साथ गुरुदक्षिणा भी लेना शुरू कर देंगे ,आप उनकी बातों पर गौर करें ....:-)))))))
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लादिवाला जी
आप विधाओं को इतनी सरसरी नज़र से क्यों देख जाते हैं... मेरी समझ से बाहर है
आपके द्वारा सुधारी गयी कुण्डलिया के दोहा अंश को देख जाइए
..
आप का राज आप पर, पूछ रहे है लोग ....................चित्र से काव्य छंदोत्सव अंक ३४ की भूमिका को आपने पढ़ा होता तो ये गलती शायद आपसे नहीं होती... खैर वहाँ भूमिका में शब्द समुच्चय , आतंरिक व्यस्था और कलों पर चर्चा है आप उसे ध्यान से पढ़ें ...कोइ संशय हो तो बेझिझक पूछें भी .
नेताजी क्या आप ने,किया उचित उपयोग ?
अब रोला अंश को देख जाइए
रोला का अंत आम का (२१२) या आपका (२१२) शब्द से कैसे हो सकता है जबकि रोला छंद के सम चरण का अंत ११२ या २२ या ११११ से किये जाने का विधान है..
आप दिए गए सुझावों को कृपया ध्यान से समझें और तदनुरूप प्रयास करें
सादर.
डॉ प्राची जी ने हमेशा की तरह प्रथम कुंडलियाँ छंद में त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाया है | मैंने प्रयास कर संशोधन किया है |
कराया एक बार पुनः अवलोकन करे | छंद के भाव सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी |
हार्दिक आभार आपका श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी और आदरणीया मीना पाठक जी
आदरणीय कुंडलियों के भाव बहुत बढ़िया हैं कहीं कही जल्दी बाजी हो गई डॉ प्राची जी की बात पर अवश्य गौर करें बहरहाल बधाई आपको
आदरणीय लक्ष्मण सर दोनों ही कुण्डलिया राजनीति और समाज को दर्शा रही हैं इस हेतु बधाई स्वीकारें
राज आप का आप पर, पूछ रहे है लोग
नेताजी क्या आप के, कर रहे सदुपयोग ? .......................सम चरण की आतंरिक शब्द व्यवस्था पुनः देखिये आदरणीय
कर रहे सदुपयोग, लगा क्या जन को ऐसा
जनता करती आस, दिया क्या शासन वैसा.
जनता को सब भान,दिखाते त्याग का साज
जनता करे प्रयोग, समझे सत्ता का राज |...................कुण्डलिया छंद का अंत २१ से ? एक बार पुनः विधान पर अवश्य ही गौर कर लीजिये आदरणीय...(२११ /११११/२२ /११२ से अंत होना चाहिए रोला छंद का)
हार्दिक आभार श्री बृजेश नीरज जी और श्री (डॉ)आशुतोष मिश्र जी | सादर
आदरणीय लक्ष्मण भाई,
समाज और राजनीति दोनों पर सुंदर कुंडलियाँ की हार्दिक बधाई ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online