ल ला ल ला ला ल ला ला ल ल ला ला ला ला
शबाब फूलों का शबनम में मिला देते हैं
शराब यूं ही हसी रोज बना देते हैं
दुआएं करते हैं हम जब भी अमन की खातिर
कबूतरों को भी हाथों से उड़ा देते हैं
कभी जो आया हमें याद सुहाना बचपन
हँसी घरोंदा ही बालू पे बना देते हैं
हुए न जब भी चरागा हैं मयस्सर हमको
चरागे दिल को यूं ही रोज जला देते हैं
समझ रहे हैं फकीरों को भिखारी या रब
फ़कीर खुद ही जिन्हें रोज दुआ देते हैं
हँसी चमन में है ये कैसी उदासी यारों
चलो गुलों से चमन आज सजा देते हैं
यकीन होता तो है यार मगर मुश्किल से
हसीन सपने कभी घर भी जला देते हैं
उमर गुजारी थी ऐ आशु सहारे जिनके
उन्ही गुलों में छिपे खार दगा देते हैं
मौलिक व अप्रकाशित
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दुआएं करते हैं हम जब भी अमन की खातिर
कबूतरों को भी हाथों से उड़ा देते हैं...........बहुत खूब............
समझ रहे हैं फकीरों को भिखारी या रब
फ़कीर खुद ही जिन्हें रोज दुआ देते हैं .......बहुत खूब...
कभी जो आया हमें याद सुहाना बचपन
हँसी घरोंदा ही बालू पे बना देते हैं
यकीन होता तो है यार मगर मुश्किल से
हसीन सपने कभी घर भी जला देते हैं
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ..ये दो शेर बहुत बहुत पसंद आये
हार्दिक बधाई
aआदरणीय पवन जी, ब्रिजेश जी जीतेन्द्र जी ..आप सभी के उत्साहवर्धन से ही लिखने की सतत प्रेरणा मिलती है ..आप सभी का स्नेह बस यूं ही मिलता रहे इसी अभिलाषा के साथ
यकीन होता तो है यार मगर मुश्किल से
हसीन सपने कभी घर भी जला देते हैं .............यह शेर खास पसंद आया
दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय डा. आशुतोष जी
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
कभी जो आया हमें याद सुहाना बचपन
हँसी घरोंदा ही बालू पे बना देते हैं ...बहुत सुन्दर
आदरणीया राजेश जी ..आपके मार्गदर्शन के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपके मार्गदर्शन के अनुरूप संशोधन कर लूँगा ..बस यूं ही स्नेह बनाए रखिये ..सादर प्रणाम के साथ .
कभी जो आया हमको याद सुहाना बचपन----इसको यदि ऐसे लिखें तो वज्न सही हो जाएगा ---कभी जो आया हमे याद सुहाना बचपन
सभी शेर काबिले तारीफ हैं दिली दाद कबूलें आदरणीय
आदरणीया मीना जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दी धन्यवाद ..सादर
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