जब जब तुम्हें सोचती हूँ
मेरे ख्वाब खिल उठते हैं
सोचती हूँ रंग बिरंगी दुनिया
अपना सजीव होना|
जब जब तुमसे मिलती हूँ
बागों में फूलों का
बेमौसम खिलना होता है
पक्षी चहचहाने लगते हैं
नदिया में सागर में
जीवन बहने लगता है
तब सब से मिलती हूँ
उल्लास से|
जब जब तुमसे मिलती हूँ
जिन्दगी छलकती है
मेरी आँखों से
मेरे हाथ महकते हैं
मेंहदी के रंग से
तब मिलती हूँ जिन्दगी से
तब मैं मिलती हूँ
अपने आप से
जब नहीं सोचती तुम्हे
आइना धुंधला हो जाता है
नदियों में जीवन
रुक जाता है
ऊपर आसमान में उड़ते पतंग
गले मिलने को
बेताब नज़र आते हैं
पूरी दुनिया ठहर जाती है
और ठहर जाती हूँ मैं ....
............................
मौलिक व अप्रकाशित
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जब नहीं सोचती तुम्हे
आइना धुंधला हो जाता है
नदियों में जीवन
रुक जाता है
ऊपर आसमान में उड़ते पतंग
गले मिलने को
बेताब नज़र आते हैं
पूरी दुनिया ठहर जाती है
और ठहर जाती हूँ मैं .... बहुत उम्दा रचना .. बधाई सरिता जी
शुक्रिया प्राची जी ,स्नेह बनाये रखें |
आदरणीया कुंती दीदी तह दिल से शुक्रिया
दी राजेश कुमारी जी हार्दिक आभार आप कृपया केवल सरिता कहिये
दिल की बातें शब्दों के लिबास ओढ़ बस बहती चली जाती हैं....
शुभकामनाएं
जब जब तुमसे मिलती हूँ
बागों में फूलों का
बेमौसम खिलना होता है
पक्षी चहचहाने लगते हैं
नदिया में सागर में
जीवन बहने लगता है
तब सब से मिलती हूँ
उल्लास से|.........प्रेम इंसान के जीवन में कितनी उर्जा भर देता है.बहुत सुंदर. सरिता जी.
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति दिल के कोमल जज्बात में गुँथी रचना ..बहुत- बहुत बधाई प्रिय सरिता जी
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