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जब जब तुम्हे सोचती हूँ

जब जब तुम्हें सोचती हूँ
मेरे ख्वाब खिल उठते हैं
सोचती हूँ रंग बिरंगी दुनिया
अपना सजीव होना|

जब जब तुमसे मिलती हूँ
बागों में फूलों का
बेमौसम खिलना होता है
पक्षी चहचहाने लगते हैं
नदिया में सागर में
जीवन बहने लगता है
तब सब से मिलती हूँ
उल्लास से|

जब जब तुमसे मिलती हूँ
जिन्दगी छलकती है
मेरी आँखों से
मेरे हाथ महकते हैं
मेंहदी के रंग से
तब मिलती हूँ जिन्दगी से
तब मैं मिलती हूँ
अपने आप से

जब नहीं सोचती तुम्हे
आइना धुंधला हो जाता है
नदियों में जीवन
रुक जाता है
ऊपर आसमान में उड़ते पतंग
गले मिलने को
बेताब नज़र आते हैं
पूरी दुनिया ठहर जाती है


और ठहर जाती हूँ मैं ....
............................

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 604

Comment

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Comment by Meena Pathak on February 1, 2014 at 12:31pm

जब नहीं सोचती तुम्हे 
आइना धुंधला हो जाता है 
नदियों में जीवन 
रुक जाता है 
ऊपर आसमान में उड़ते पतंग
गले मिलने को 
बेताब नज़र आते हैं
पूरी दुनिया ठहर जाती है


और ठहर जाती हूँ मैं .... बहुत उम्दा रचना .. बधाई सरिता जी 

Comment by Sarita Bhatia on February 1, 2014 at 9:43am

शुक्रिया प्राची जी ,स्नेह बनाये रखें |

Comment by Sarita Bhatia on February 1, 2014 at 9:42am

आदरणीया कुंती दीदी तह दिल से शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on February 1, 2014 at 9:42am

दी राजेश कुमारी जी हार्दिक आभार आप कृपया केवल सरिता कहिये 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 31, 2014 at 9:55pm

दिल की बातें शब्दों के लिबास ओढ़ बस बहती चली जाती हैं....

शुभकामनाएं 

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 8:44pm

जब जब तुमसे मिलती हूँ
बागों में फूलों का
बेमौसम खिलना होता है
पक्षी चहचहाने लगते हैं
नदिया में सागर में
जीवन बहने लगता है
तब सब से मिलती हूँ
उल्लास से|.........प्रेम इंसान के जीवन में कितनी उर्जा भर देता है.बहुत सुंदर. सरिता जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 31, 2014 at 6:52pm

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति दिल के कोमल जज्बात में गुँथी रचना ..बहुत- बहुत बधाई प्रिय सरिता जी 

कृपया ध्यान दे...

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