हॅसी रूप कलियों का जब मुस्कुराया,
उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया।।
बहारों की रानी,
राजनीति पुरानी।
नर्इ-नर्इ कहानी,
जवानी-दीवानी।
महगार्इ बढ़ाकर,
नववधू घर आती।
दिशाएं भी छलती,
गरीबी की थाती।
अमीरों का राजा, अल्ला-राम आया।। 1
सजाते हैं संसद,
समां बर्रा छत्ता।
परागों को जन से,
चुराती है सत्ता।
अगर रोग-दु:ख में,
पुकारे भी जनता।
शहर को जलाकर,
कमाते हैं भत्ता।
चुनावों का सस्ता गल्ला शाम आया।। 2
तरसती है शिक्षा,
बिलखती है दीक्षा।
चलन से छले न्याय,
सत, करती प्रतीक्षा।
चिकित्सा की मर्जी,
अनिशिचत है भिक्षा।
उधारी में लटके,
किसानों की इच्छा।
नहीं बिजली-पानी, हल्ला काम आया।। 3
के0पी0 सत्यम मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 नीरज भार्इजी, आशुतोष भार्इजी व निकोर सर जी, आप सभी का बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
अच्छे बिम्ब और भाव हैं... आपको रचना के लिए बधाई।
आदरणीय केवल जी ..
अगर रोग-दु:ख में,
पुकारे भी जनता।
शहर को जलाकर,
कमाते हैं भत्ता।
चुनावों का सस्ता गल्ला शाम आया।। ..इस बेहतरीन नवगीत की इन बिशेष पंक्तियों के लिए तहे दिल बधाई सादर
नहीं बिजली-पानी, हल्ला काम आया। बहुत यथार्थ परक रचना .. सुन्दर ..
आदरणीय सौरभ सर जी, सादर प्रणाम! आपका हार्दिक आभार। सादर
आदरणीय अन्नपूर्णा जी एक बार फिर आपका हार्दिक आभार। सादर,
कई बिम्ब ध्यान खींचते हैं. अच्छे हैं. इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
सुंदर नव गीत बधाई आपको आ0 केवल भाई जी ।
आ0 अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार। सादर,
सुंदर नवगीत आ0 केवल भाई जी , बधाई आपको ।
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