ऐ आसमान
इन सर्द रातों के
घने कोहरे में
तेरा दीदार नही होता
तेरी गर्म छुअन महसूस होती है
मुझे पता है, तू भी तपड़ता है
तरसता है, व्याकुल है मेरे शुष्क अधरों
को नमी देकर
खुद नमी पाने को
अपने शुष्क अधरों के लिए
गुनगुनी सी धूप में
मैं जल रही हूँ
ठंडी सर-सराती हवाएं
मेरे प्यार के दामन को चीर देती हैं
इतने बड़े दिन की, न जाने कब होगी ?
शीतल शाम
तू आएगा न मेरे पास
तारों भरा गहना लेकर
अपने मिलन की रात को
मैं तड़प रही हूँ...
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ0 जितेंद्र जी सुंदर भावो के साथ सुंदर रचना आपको बधाई ।
बहुत सुन्दर भावप्रधान प्रस्तुति ...बधाई आपको
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
रचना आपको पसंद आई, लेखनकर्म सार्थक हुआ आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना दीदी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आदरणीय जितेन्द्र भाई , बहुत सुन्दर गीत रचना की है , आपको हार्दिक बधाई ॥
बहुत सुन्दर रचना .. बधाई प्रिय जितेन्द्र जी
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