For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुल के बदले में मुझे बस खारों की माला मिली

२१२२        २१२२       २२२२     २१२

ला ल ला ला    ला ल ला ला   ला ला ला ला    ला ल ला 

भेदने जब तम फलक का रवि आमादा हो गया

चाँद पीकर चांदनी अपनी ही नभ में खो गया 

हाथ हम रखते रहे जलते अंगारों पर यूं ही 

एक फरिस्ता जिन्दगी में ख्वाबे गुल ही बो गया 

बज्म में वो गीत गाये झूमे पीकर मस्त हो 

और नन्हा लाल घर पे रोके भूखा सो गया 

घिर के नफरत में जहाँ की सूझा जब कुछ भी नहीं 

चौखटों पे मंदिरों की नन्हा बचपन रो गया 

कोठरी में जब गए काजल की काले हो गए

पर मेरा ईमान या रब  सारी कालिख धो गया 

गुल के बदले में मुझे बस खारों की माला मिली 

पर खुदा माला में मेरी चंपा जूही पो गया 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2014 at 4:55pm

आदरणीय अरुण जी, राम शिरोमणि जी , अखिलेश जी , गिरिराज भाईसाब , रमेश जी ..आप सभी के इस स्नेहमयी प्रोत्साहन के लिए तहे दिल धन्यवाद ....बस आप सब का मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहे इसी कामना  के साथ ..सादर 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:09pm

सुगढ रचना शिल्प एवं प्रगाढ भावों से युक्त इस गजल पर आदरणीय आपको ढेरो बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 5:39pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ॥

बज्म में वो गीत गाये झूमे पीकर मस्त हो 

और नन्हा लाल घर पे रोके भूखा सो गया  - इस शे र के लिये विशेष तौर पर बधाई ॥

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 10, 2014 at 4:54pm

आदरणीय आशुतोष भाई ,

आपकी इस रचना के भाव पक्ष मजबूत व शिक्षाप्रद है , मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 2:10pm

आदरणीय आशुतोष जी,बहुत सुन्दर गज़ल  बधाई आपको ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 10, 2014 at 11:50am

वाह वाह आदरणीय आशुतोष जी बेहद उम्दा शानदार ग़ज़ल कही है आपने पूरी ग़ज़ल पर बधाई इन दो अशआरों पर विशेष दाद कुबूल फरमाएं.

बज्म में वो गीत गाये झूमे पीकर मस्त हो 

और नन्हा लाल घर पे रोके भूखा सो गया

कोठरी में जब गए काजल की काले हो गए

पर मेरा ईमान या रब  सारी कालिख धो गया

Comment by Meena Pathak on February 8, 2014 at 12:09pm

बहुत सुन्दर गज़ल ... बधाई आदरणीय आशुतोष जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2014 at 1:05pm

आदरणीय लक्ष्मण जी हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद //सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on February 7, 2014 at 10:49am
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2014 at 10:47am

आदरणीया कुंती जी. आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
3 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service