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वो होठ दांत से यूं अपने दबाता क्यूँ है

१२१२    १२१२     ११२२    २२

 

वो मुझसे पेश रोज रोज यूं आता क्यूँ है

चरागे दिल जला जला के बुझाता क्यूँ है

 

निगाह से ही बात दिल की बताता क्यूँ है

वो बज्म में नजर यूँ हमसे चुराता क्यूँ है

 

निगाहों में छुपी है कोई पहेली उसके

घरौंदा मुझ को देखकर वो बनाता क्यूँ है

 

है बात कुछ,  नही पता है मुझे खुद जिसका

 वो मुझको देख नजरें अपनी झुकाता क्यूँ है

 

रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो

ज़माने से हथेलियों को छुपाता क्यूँ है

 

 लिखे जो वालू पे ही नाम मेरा हो तन्हा

किसी को देख मेरा नाम मिटाता क्यूँ है

 

समझ रही हैं मेरे दिल की धड़कने कुछ कुछ

वो होठ दांत से यूं अपने दबाता क्यूँ है 

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 12:41am

रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो

ज़माने से हथेलियों को छुपाता क्यूँ है

वाह !

बधाई स्वीकारें .. .

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2014 at 5:41pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बधाई आपको 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2014 at 11:02am

आदरणीय जीतेन्द्र जी .. आदरणीय रमेश जी. अनिल जी ..आप सभी का हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2014 at 11:00am

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपके मार्गदर्शन के लिए तहे दिल शुक्रिया ...२२ की जगह ११२ की इस बहर में छूट है की नहीं मैं थोडा कन फ्यूज हूँ ..जो शेर बेबहर हो रहे है उन्हें ठीक करने का प्रयास करूंगा ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 18, 2014 at 3:55pm

आदरणीय मिश्राजी, खूबसूरत गजल प्रस्तुत करने के लिये बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 17, 2014 at 11:35pm

बहुत सुंदर गजल आदरणीय डा. आशुतोष जी, हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2014 at 6:20pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , सुन्दर बातें कहीं है ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ कुछ मिसरे बेबह्र हो रहे हैं  , फिर से देख लीजियेगा ---

1 ]  वो बज्म में यूं नजर हमसे चुराता क्यूँ है --- और

2 ] किसी को देख मगर नाम मिटाता क्यूँ है

3 ] है बात कुछ तो मुझ में जिस का पता खुद न मुझे  -- इस मिसरे मे 22 को 112 लिया गया है , ये छूट है या नही इस बह्र मे पता नही ॥

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 17, 2014 at 5:47pm
निगाहों में छुपी है कोई पहेली उसके

घरौंदा मुझ को देखकर वो बनाता क्यूँ है


....................बहुत खूब आदरणीय!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 16, 2014 at 10:12am

आदरणीय चंद्रशेखर जी ..बस यूं ही आप का स्नेह मिलता रहे इसी कामना के साथ ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 16, 2014 at 10:10am

आदरणीया मीना जी ..हौसला वर्धक इन शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

कृपया ध्यान दे...

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