For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो होठ दांत से यूं अपने दबाता क्यूँ है

१२१२    १२१२     ११२२    २२

 

वो मुझसे पेश रोज रोज यूं आता क्यूँ है

चरागे दिल जला जला के बुझाता क्यूँ है

 

निगाह से ही बात दिल की बताता क्यूँ है

वो बज्म में नजर यूँ हमसे चुराता क्यूँ है

 

निगाहों में छुपी है कोई पहेली उसके

घरौंदा मुझ को देखकर वो बनाता क्यूँ है

 

है बात कुछ,  नही पता है मुझे खुद जिसका

 वो मुझको देख नजरें अपनी झुकाता क्यूँ है

 

रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो

ज़माने से हथेलियों को छुपाता क्यूँ है

 

 लिखे जो वालू पे ही नाम मेरा हो तन्हा

किसी को देख मेरा नाम मिटाता क्यूँ है

 

समझ रही हैं मेरे दिल की धड़कने कुछ कुछ

वो होठ दांत से यूं अपने दबाता क्यूँ है 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 12:41am

रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो

ज़माने से हथेलियों को छुपाता क्यूँ है

वाह !

बधाई स्वीकारें .. .

Comment by Sarita Bhatia on February 19, 2014 at 5:41pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बधाई आपको 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2014 at 11:02am

आदरणीय जीतेन्द्र जी .. आदरणीय रमेश जी. अनिल जी ..आप सभी का हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2014 at 11:00am

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपके मार्गदर्शन के लिए तहे दिल शुक्रिया ...२२ की जगह ११२ की इस बहर में छूट है की नहीं मैं थोडा कन फ्यूज हूँ ..जो शेर बेबहर हो रहे है उन्हें ठीक करने का प्रयास करूंगा ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 18, 2014 at 3:55pm

आदरणीय मिश्राजी, खूबसूरत गजल प्रस्तुत करने के लिये बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 17, 2014 at 11:35pm

बहुत सुंदर गजल आदरणीय डा. आशुतोष जी, हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2014 at 6:20pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , सुन्दर बातें कहीं है ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ कुछ मिसरे बेबह्र हो रहे हैं  , फिर से देख लीजियेगा ---

1 ]  वो बज्म में यूं नजर हमसे चुराता क्यूँ है --- और

2 ] किसी को देख मगर नाम मिटाता क्यूँ है

3 ] है बात कुछ तो मुझ में जिस का पता खुद न मुझे  -- इस मिसरे मे 22 को 112 लिया गया है , ये छूट है या नही इस बह्र मे पता नही ॥

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 17, 2014 at 5:47pm
निगाहों में छुपी है कोई पहेली उसके

घरौंदा मुझ को देखकर वो बनाता क्यूँ है


....................बहुत खूब आदरणीय!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 16, 2014 at 10:12am

आदरणीय चंद्रशेखर जी ..बस यूं ही आप का स्नेह मिलता रहे इसी कामना के साथ ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 16, 2014 at 10:10am

आदरणीया मीना जी ..हौसला वर्धक इन शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"२१२२ २१२२ २१२२ २१२ अब तुम्हारी भी रगों में खूँ उबलना चाहिए ज़ुल्म करने वालों का सीना दहलना…"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"इसमें एडमिन की सहायता लगेगी आपको।"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"अभी तो तात्कालिक सरल हल यही है कि इसी ग़ज़ल के किसी भी अन्य शेर की द्वितीय पंक्ति को गिरह के शेर…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. तिलकराज सर, मैंने ग़ज़ल की बारीकियां इसी मंच से और आप की कक्षा से ही सीखीं हैं। बहुत विनम्रता के…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"परम आदरणीय सौरभ पांडे जी व गिरिराज भंडारी जी आप लोगों का मार्गदर्शन मिलता रहे इसी आशा के…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। 'मिलना' को लेकर मेरे मन में भी प्रश्न था, आपके…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"2122 2122 2122 212 दोस्तों के वास्ते घर से निकलना चाहिए सिलसिला यूँ ही मुलाक़ातों का चलना चाहिए…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार  बहुत बहुत आभार आपका ,ये प्रश्न मेरे मन में भी थे  सादर "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"इस बार के तरही मिसरे को लेकर एम प्रश्न यह आया कि ग़ज़ल के मत्ले को देखें तो क़ाफ़िया…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति औल स्ने के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। 6 शेर के लिए आपका सुझाव अच्छा…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन।गजल आपको अच्छी लगी, लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service