१२१२ १२१२ ११२२ २२
वो मुझसे पेश रोज रोज यूं आता क्यूँ है
चरागे दिल जला जला के बुझाता क्यूँ है
निगाह से ही बात दिल की बताता क्यूँ है
वो बज्म में नजर यूँ हमसे चुराता क्यूँ है
निगाहों में छुपी है कोई पहेली उसके
घरौंदा मुझ को देखकर वो बनाता क्यूँ है
है बात कुछ, नही पता है मुझे खुद जिसका
वो मुझको देख नजरें अपनी झुकाता क्यूँ है
रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो
ज़माने से हथेलियों को छुपाता क्यूँ है
लिखे जो वालू पे ही नाम मेरा हो तन्हा
किसी को देख मेरा नाम मिटाता क्यूँ है
समझ रही हैं मेरे दिल की धड़कने कुछ कुछ
वो होठ दांत से यूं अपने दबाता क्यूँ है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो
ज़माने से हथेलियों को छुपाता क्यूँ है
वाह !
बधाई स्वीकारें .. .
आदरणीय आशुतोष जी बहुत बधाई आपको
आदरणीय जीतेन्द्र जी .. आदरणीय रमेश जी. अनिल जी ..आप सभी का हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ..सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपके मार्गदर्शन के लिए तहे दिल शुक्रिया ...२२ की जगह ११२ की इस बहर में छूट है की नहीं मैं थोडा कन फ्यूज हूँ ..जो शेर बेबहर हो रहे है उन्हें ठीक करने का प्रयास करूंगा ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय मिश्राजी, खूबसूरत गजल प्रस्तुत करने के लिये बधाई
बहुत सुंदर गजल आदरणीय डा. आशुतोष जी, हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , सुन्दर बातें कहीं है ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ कुछ मिसरे बेबह्र हो रहे हैं , फिर से देख लीजियेगा ---
1 ] वो बज्म में यूं नजर हमसे चुराता क्यूँ है --- और
2 ] किसी को देख मगर नाम मिटाता क्यूँ है
3 ] है बात कुछ तो मुझ में जिस का पता खुद न मुझे -- इस मिसरे मे 22 को 112 लिया गया है , ये छूट है या नही इस बह्र मे पता नही ॥
आदरणीय चंद्रशेखर जी ..बस यूं ही आप का स्नेह मिलता रहे इसी कामना के साथ ..सादर
आदरणीया मीना जी ..हौसला वर्धक इन शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
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