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एक कतरा रोशनी है एक कतरा जाम है
दिल जलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है
उनके क़दमों के नहीं नामों निशा भी अब कहीं
ख्वाब में पर क़दमों की आहट को सुनना आम है
जुगनुओं की रोशनी से हर चमन आबाद था
रोशनी क्या आज तो जुगनू हुआ गुमनाम है
उनसे बिछड़े जाने कितने ही जमाने हो गए
पर न सूखी आँख आँखों से छलकता जाम है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपकी ग़ज़ल पर दाद है, भाईजी.
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी .. ’कर के’ का प्रयोग न ही करें तो उचित. के वस्तुतः कर का ही संक्षिप्त रूप है.
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है... सदा पर या सदा में ?
सादर
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है ............बहुत सुकोमल शेर
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...बढ़िया गजल बधाई आपको....जैसा की गिरिराज भाई ने सुझाया है कुछ अलग अर्थ में बनेगी गजल ..मुझे तो ये आप की लिखी सुन्दर लगी
भ्रमर ५
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । |
अहा आनंद आ गया बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय आशुतोष जी आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥//सादर
दिलजलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है .... वह बहुत खूब . सुन्दर ग़ज़ल कही है .
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है ..............वाह! बहुत खूब
हार्दिक बधाई स्वीकारें इस सुंदर गजल पर आदरणीय डा.आशुतोष जी
आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी -- इस मिसरे मे की , की जगह को कहना सही रहेगा , या ज़रा की जगह सदा कहना सही होगा , ऐसा मुझे लगता है , आपक पढ़ के देख लीजियेगा , शायद आपको भी सही लगे ॥
वाह वाह आदरणीय आशुतोष जी बहुत सुन्दर गजल है
एक कतरा रोशनी है एक कतरा जाम है
दिल जलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है
उनके क़दमों के नहीं नामों निशा भी अब कहीं
ख्वाब में पर क़दमों की आहट को सुनना आम है
वाह बहुत पसंद आये शेर , हार्दिक बधाई
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