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भाग कर कहाँ जाएँ
हर जगह तुम्हे पायें

जब से किया किनारा मैंने
दूरियां हैं घटती जाएँ

तुम क्या जानो कैसे-कैसे
बेढंगे से ख्वाब सताएं

गुपचुप-गुपचुप, धीरे-धीरे
माजी के लम्हात रुलाएं

चारों ओर भिखारी, डाकू
मांगें और लूट ले जाएँ

तुमसा दाता कहाँ से पायें
वापस तेरे दर पर आयें

(मौलिक अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 11, 2014 at 10:26am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय अनवर साहब, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:26pm

बहुत ही सुंदर रचना है, बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 5:54pm

आदरणीया सुन्दर द्विपदियों के लिये बधाइयाँ ॥

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 10, 2014 at 12:40pm

बहुत सुन्दर आदरणीय

Comment by Meena Pathak on February 8, 2014 at 12:05pm

आहुत सुन्दर रचना ... बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

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