For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाशिये में प्रेम

जाने क्या सोचकर 
.......उसने भेजा 
एक गुलाब 
एक मुस्कान 
एक चितवन 
एक सरगोशी 
एक कामना 
एक आमंत्रण 

और मैंने पलटकर 
उसकी तरफ देखा भी नही 
भाग लिया 
उस तरफ 
जहां काम था 
चिंताएं थीं 
अपूर्णताये थीं 
सुविधाएं थीं 
अनुकूलताएँ थीं 
थकन और 
स्वप्न-हीन निद्रा थी...

मुंह बिचकाकर 
हँसते हुए उसने कहा--
सपनों के बिना जीवन कैसा
मैंने अपने कपड़ों को टटोला 
कहीं मैंने कफ़न तो लपेट नही रक्खा...?
---------------------अ न व र सु है ल -----------

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 438

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2014 at 11:44pm

निर्लिप्तता को ऐसा बिम्ब ! आपसे अनायास साझा कर रहा हूँ, आदरणीय अनवर साहब, कि अरसे बाद आपकी इतनी सशक्त कविता पढ़ रहा हूँ. और मन इस कविता के विस्तार पर मुग्ध है.

श्रीमद्भगवद्गीता में एक श्लोक है -
विहाय कामन् यः सर्वान् पुमांश्चरति निस्पृहः
निर्ममो निरहंकारः स शांतिम् अधिगच्छति ॥

जो मनुष्य अपनी समस्त इच्छाओं से परे निस्पृह और बिना मोह या कर्ताभाव के अहंकार के बर्ताव करता है वही मूलतः परम शांति का अधिकारी है.

उपरोक्त श्लोक के सापेक्ष आपकी प्रस्तुत कविता को देखा जाय, तो कई-कई कर्तव्यों के मध्य की ऊहापोह सामने आती है.
आपकी इन पंक्तियों को देखें --

मैंने पलटकर
उसकी तरफ देखा भी नही
भाग लिया
उस तरफ
जहां काम था
चिंताएं थीं
अपूर्णताये थीं
सुविधाएं थीं
अनुकूलताएँ थीं
थकन और
स्वप्न-हीन निद्रा थी...

तभी तो शांति की अपेक्षा शरीर से लिपटे कफ़न सा अंतिम सत्य की तरह प्रतीत होती है.

मुंह बिचकाकर
हँसते हुए उसने कहा--
सपनों के बिना जीवन कैसा
मैंने अपने कपड़ों को टटोला
कहीं मैंने कफ़न तो लपेट नही रक्खा...?

यह उपालम्भ नहीं स्खलित पौरुष का मूढ़ प्रारूप है. इसे उसीसे कवि ने कहवाया है जिसका ऐसा हक़ बनता है.

इस प्रस्तुति के लिए सादर आभार आदरणीय.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 7:13pm

जब ज़िंदगी की आपाधापी पल पल में व्याप्त खूबसूरती को जीने का अवसर ही न दे, भाव शून्य कर दे... तो यूं ही लगता होगा //कहीं मैंने कफ़न तो लपेट नही रक्खा...?//

प्रस्तुति की विषय वस्तु पसंद आयी.

बधाई स्वीकारें 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:52pm

जीवन गीत सुनाती रचना..................एक पलों में १०० पलों की बता.....बहुत खूब...........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 16, 2014 at 10:21am

बहुत प्रभावशाली रचना आदरणीय अनवर साहब, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2014 at 1:52pm

इस सुंदर रचना पर मेरी तारा से हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Meena Pathak on February 14, 2014 at 4:09pm

बहुत बहुत सुन्दर ... ढेरों बधाइयाँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार। विस्तार से दोष…"
Friday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
Mar 6
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Mar 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Mar 2
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Mar 1
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service