For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विरोध और गुंडई

इतना दंभ
इतना घमंड
इतनी आतुरता
इतनी व्यग्रता
इतनी उद्दंडता
ठीक नही बन्धु
अभी जियादा दिन नही हुए
गए अंग्रेजों को
भूल गये हाड-मांस के
नंगे-बदन, लंगोटी धारी
उस महामानव को
जिसने ऐसी चलाई थी आंधी
कि उखड गये थे पाँव
उनके जिनके साम्राज्य में
डूबता नही था सूरज.....
मैं जानता हूँ
कि विरोध सहना तुमने सीखा नही
कि विरोध करने और गुंडई करने के बीच
एक बड़ी दीवार है
गुंडई विरोध नही
गुंडई इन्किलाब नही....
मैं जानता हूँ कि गुंडई को
संवैधानिकता का दर्जा देने का
प्रयास तुम्हारा कभी सफल नही होगा...
तुम किस भरम में जीते हो बन्धु....!
-----------------------------------अ न व र सु है ल ----------
(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 333

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 7, 2014 at 1:07pm

अपने कथ्य को लिये यह कविता मानो एक भ्रम में जीती हुई लगी. जिन इंगितों के बरक्स यह कविता चलती है वे स्वयं भ्रम के वातावरण का निर्माण करते दीखे हैं. शाब्दिक हुई कई बातें अंतर्निहित भावनाओं के कारण सुहाती अवश्य हैं लेकिन तार्किकता और सार्थकता की कसौटी पर भी वे मान्य हों ऐसा सदा नहीं होता. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, कि सूरज जिसके राज्य में नहीं डूबता था के सापेक्ष आपकी अत्यंत सार्थक पंक्ति - गुण्डई इंकिलाब नहीं.. अपनी ताकत को जाया होते देख रही है. क्यों कि वह एक पंक्ति कई विचारधाराओं को साधने चली है. मुझे पूरी तरह विदित है कि आजकी अव्यवस्था और लिप्सा की पराकाष्ठा कई विवादों की जन्मदाता हैं. लेकिन हम एक ही साधै सब सधै से इसे नहीं साध सकते. फिरभी आपकी इस वैचारिक कविता के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
सादर

Comment by Arun Sri on March 31, 2014 at 11:41am

कितना ही अच्छा होता जो  ऐसी आदर्शवादी कविताएँ समाज में साकार हो पातीं ! आशावादी ! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 28, 2014 at 3:42pm

भावनायें मुखर होकर स्थान प्राप्त की है, रचना कुछ अधिक विस्तार पा गई है, कविता अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से मश्कूर हूँ।"
42 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया रिचा जी,  अच्छी ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
6 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
8 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service