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बड़े कवि

 

बड़े कवि

बड़ी कविता लिखते है 

जिसे बड़े कवि पढ़ते है

फिर परस्पर पीठ खुजलाते हुए 

कला साहित्य के 

नए प्रतिमान गढ़ते है

बड़े कवि

ख़ारिज कर देते है

किसी को भी 

तुक्कड़ या लिक्खाड़ 

कह कर

बड़े कवि

गंभीरता का लबादा ओढ़े 

किसी नोबेल विजेता की 

शान में कसीदे पढ़ते है

विदेशी कवियों को'कोट ' करते है

फिर उस 'कोट' के

भार से दबे श्रोता को

आश्चर्यचकित छोड़  

आगे बढ़ जाते है

कुछ पत्रिकाएं भी निकालते है

बड़े कवि

जिन्हें लिखने वाले पढ़ते है

समझ में आना

लोकप्रिय होना

सपाटबयानी होती है

जो लिक्खाडों का दुर्गुण है

बड़े कवि सूत्र रचते है

बड़े कवि ही उनका भाष्य करते है

दफ्तर के प्रोमोशन की तरह

बनते है बड़े कवि

 

 

 

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Comment

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Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 20, 2011 at 12:46am
rajesh ji,atyant abhar
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 20, 2011 at 12:45am
bhai rakesh ji kshma prarthi hun deri ke liye aap ka atyant abhaar
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 20, 2011 at 12:44am
rana pratap ji bahut abhaari hun,deri ke liye kshama prarthi hun
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 20, 2011 at 12:42am
abhaar vandana ji
Comment by राजेश शर्मा on March 19, 2011 at 5:41pm
बहुत खूब लिखा है अश्वनी जी, हमारे शहर में भी हें कुछ बड़े कवि .
सच लिखने के लिए बधाई. 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on February 5, 2011 at 10:24am
मुझे भी बहुत से बडे कवियों की कवितायें नहीं समझ आती हैं। बहुत तीखा व्यंग मारा है आपने। बहुत सुंदर।

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