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मेरे संग्रह अँधेरे की चीख से ३ ग़ज़ले

एक 

जब से हुई है बंद दुकानें उधार की 

रंगत बिगड़ गई है फसले बहार की

सावन के रंग अब के फीके लगा किये

ये उम्र है नहीं अब सोलह सिंगार की

बौने है किस कदर ये आदम बड़े बड़े

हद देख ली है हम ने सब के मयार की

हो पायेगा उन्हें क्या जाने यहाँ अता

मन्नत जो मानते है उजड़े मजार की

बाजार से गुजर के वो शख्स रो पड़ा

कीमत बढ़ी हुई है मुश्ते गुबार की

किस्सा-ए-तोता-मैना यों याद था उन्हें

लिखी गयी कहानी उनसे शिकार की

 

दो 

हादसे खामोश है गुजरे इधर से 

लोग नंगे सर नहीं गुजरे इधर से

चीखती गलियों में कैसे रह रहे है

जान जाये आप जो गुजरे इधर से

आसमां हर सिम्त अपना रंग बदले

किसलिए ताजी हवा गुजरे इधर से

हिल गयी नीवें कहें क्या छप्परों की

इस कदर तूफ़ान है गुजरे इधर से

आँख खोले देखते तो देखते भी

नींद में ही आप है गुजरे इधर से

मुस्कराए गर तो मुंह टेढ़ा हुआ है

आंसुओं के काफिले गुजरे इधर से

 

तीन 

आदमी तो जाये धरती छोड़ कर पर 

ये समंदर रोज राहें रोकता है

टूट जाये आदमी नाजुक सी शै है

एक जज्बा है मगर जो टोकता है

एक सन्नाटा शहर में गूंजता है

आदमी रह रह के लेकिन चौंकता है

सांड छुट्टे खेत ना बस्ती चरेंगे

वक़्त का कुत्ता मगर क्यों भोंकता है

जिस्म में कतरे अभी बाकी बचे है

आदमी है,धौंकनी है,धौंकता है

सर्द मौसम आयेगा निश्चित हुआ है

भट्टियों में नींद कोई झोंकता है

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Comment

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Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 11:33pm
आभार राणा प्रताप जी  

 

Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 17, 2011 at 11:30pm
आभार वंदना जी  

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on February 5, 2011 at 8:36am

किस्सा-ए-तोता-मैना यों याद था उन्हें

लिखी गयी कहानी उनसे शिकार की

 

चीखती गलियों में कैसे रह रहे है

जान जाये आप जो गुजरे इधर से

 

जिस्म में कतरे अभी बाकी बचे है

आदमी है,धौंकनी है,धौंकता है

बहुत खूब, तीनों गज़लें आला दर्जे की हैं और ज़माने के दर्द को बखूबी बयान कर रहीं है| पढ़वाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया|

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"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
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