For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी कसौटियों पर कस कर

निखरती सी गई

जितनी ये तबाह हुई

उतनी संभरती सी गई

आदमियत और गद्दारी में आकर

घुलती सी गई

कभी ये राम,रहीम ,नानक

में बँटती सी गई

कभी ये सुरमई शामों में वीणाकी तरह

बजती सी गई

कभी बेगानों की तरह

कटती सी गई

कभी वादे कभी शोषण में

फँसती सी गई

कभी ये सारे बंधन तोड़ कर

बेदाग सी लगी

कभी ये अंगारों पर चल कर

दहकती सी लगी

कभी ये डगमगाते दीपक 

जैसे बुझती सी लगी

कभी ये सुनहरे तारों से बने

पिंजड़े सी लगी

कभी उसमें फंसा पाखी

जैसी बेबस सी लगी

ये ज़िंदगी तेरी एक -एक कठिनाई

मुझे कोहनूर सी लगी

जड़ाया जब उसे अंगूठी में

तो नगीने जैसी लगी

ये ज़िंदगी तू  पात -पात हर डाल-डाल

पर लिखी सी लगी

खग ,विहग,पखेरू के

कंठ में गीत सी लगी

कभी तू महकती चमेली

के फूलों सी लगी

कभी -कभी ये ज़िंदगी

बेरंग गंधहीन सी लगी

जितना कहूँ तेरे लिए

वो कम है क्योंकि

तू हर एक पल

पहेली सी लगी ।

कल्पना मिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on April 13, 2014 at 7:35am

बहुत बहुत सुन्दर ... बधाई 

Comment by savitamishra on February 23, 2014 at 7:12pm

सुन्दर रचना

Comment by kalpna mishra bajpai on February 23, 2014 at 9:36am

आप सब गुणी जनों का बहुत -बहुत आभार ।

Comment by annapurna bajpai on February 23, 2014 at 12:23am

बहुत बढ़िया !! सुंदर भाव , इस प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी । 

Comment by kalpna mishra bajpai on February 21, 2014 at 9:26pm

आदरणीय प्राची जी बहुत बहुत शुक्रिया। आपके द्वारा मेरे लिए कहे गए शब्द आप के ह्रदय की विशालता को दर्शाते हैं  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 8:22pm

जिन्दगी के सफ़र ..अलग अलग एहसासों को बहुत बारीकी से शब्दों में प्रस्तुत किया है 

हार्दिक बधाई 

Comment by kalpna mishra bajpai on February 20, 2014 at 4:09pm

आदरणीय नीरज जी आपका बहुत बहुत आभार। सर, आपसे निवेदन है की मुझे मेरी कमियों से औगत कराते रहिएगा 

Comment by बृजेश नीरज on February 19, 2014 at 11:42pm

सुन्दर रचना है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by kalpna mishra bajpai on February 19, 2014 at 3:36pm

आप सभी गुनिजनों का तहे दिल से शुक्रिया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 19, 2014 at 9:40am

जितना कहूँ तेरे लिए

वो कम है क्योंकि

तू हर एक पल

पहेली सी लगी ।.............बहुत सुंदर, अंतिम पंक्तियों में आपने शायद जिन्दगी के सही पहलू का चित्रण किया

हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service