सामने से गुज़र रही है
भीड़
हाथों में हैं झंडे
केसरिया
हरे
शोर बढ़ता जा रहा है
झंडे
हथियार बन गए हैं
जमीन लाल हो रही है
यह अजीब बात है
झंडे चाहे जिस रंग के हों
जमीन लाल ही होती है
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, आपका हार्दिक आभार!
आपकी प्रस्तुत रचना एक वाद के सापेक्ष अपनी सार्थकता स्थापित करती दीखती है. अतः मेरा कुछ कहना अनुमन्य नहीं होगा. शायद.
झंडों या राष्ट्रभक्ति या पारंपरिक अस्मिता की अवधारणा को नकारती एक पूरी जमात खड़ी की गयी है, उस मानसिकता द्वारा जो स्वयं अपना ’झंडा’ उठाये एक समय से उनके विरुद्ध लाल-पीली होती रही है.
शुभ-शुभ
आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय लक्ष्मण जी, राम शिरोमणि भाई आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय नीरज भाई, श्याम नारायण जी आप दोनों का बहुत आभार!
आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!
बहुत सुंदर गहन रचना, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी
सुन्दर भाव लिए रची रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री बृजेश नीरज जी, सच्चाई यही है कि -
केसरिया झंडे लिए
या फिर पहने
केसरिया बाना
धरती को तो
होना है लाल ही !
गागर में सागर, आदरणीय भाई बृजेश जी ,हार्दिक बधाई आपको //सादर
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई............... |
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