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मै पागल मेरा मनवा पागल

मै पागल मेरा मनवा पागल

मै पागल  मेरा मनवा  पागल, ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

आज फरिश्ता भी गर कोई

इस  धरती पर  आ  जाए

इंसाँ  को  इंसाँ   से  लड़ते-

देख  देख  वह  शरमाए ।

बेटी  को  बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली

मै  पागल  मेरा मनवा पागल,  ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

दूध दही की नदियां थी तब-

उनमें  गंदा  पानी   बहता

द्वारे – द्वारे, नगरी – नगरी,

विषधर यहाँ  पला  करता ।

कान्हा आकर इन्हें सम्हालो , झुलस  रही है कली – कली

मै पागल  मेरा मनवा  पागल,  ढूँढे  इंसाँ   गली – गली ।

विष का प्याला भरा हुआ है

जहर  भरा  है  कानों   मे

ना बलिदानी जज्बा है अब –

धरती  के  दीवानों   मे ।

जाने कब सुख शांति होगी , जाएगी कब दु:ख की बदली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल,  ढूँढे  इंसाँ   गली – गली ।

राम कृष्ण  निकलो मंदिर से

नानक  तुम  गुरुद्वारे   से

ईसा  निकलो  गिरजाघर से

अल्ला ! मस्जिद के द्वारे से ।

कहाँ  छुपी  मीरा दीवानी ,  कहाँ  छुपी  शबरी  पगली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल, ढूँढे  इंसाँ  गली – गली ।

मंदिर द्वारे सुबह गुजारी

मस्जिद द्वारे शाम ढली                    

मिला न इंसाँ  मुझको कोई

जाने  कैसी  हवा  चली ?

आएगी  ऐसी  बेला  जब,  होगी  जग  से  चला – चली

मै  पागल  मेरा  मनवा  पागल  ढूँढे इंसाँ  गली – गली ।

----------- मौलिक एवम अप्रकाशित --------- 

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Comment by नादिर ख़ान on February 22, 2014 at 3:37pm

 मंदिर द्वारे सुबह गुजारी

मस्जिद द्वारे शाम ढली                    

मिला न इंसाँ  मुझको कोई

जाने  कैसी  हवा  चली ?

आएगी  ऐसी  बेला  जब,  होगी  जग  से  चला – चली

मै  पागल  मेरा  मनवा  पागल  ढूँढे इंसाँ  गली – गली ..........

दिल  से एक ही शब्द निकल रहा है वाह -वाह -वाह...

 बहुत सुंदर गीत आदरणीय ब्रम्ह्चारी जी .....

Comment by Shyam Narain Verma on February 22, 2014 at 2:55pm
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना बहुत 2 बधाई आदरणीय ............

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