सखि री ! फागुन के दिन आए
तृषित रूपसी ठगि – ठगि जाए
कलरव से गूँजे अमराई
प्रिय जाने किस देश पड़े ?
हर पल , हर क्षण काटे तनहाई ।
सूना – सूना दिन लागे , साजन की याद सताये
सखि री ! फागुन के दिन आए ।
फूली सरसों और पगडंडी –
आज दिखे सुनसान रे !
करवट लेते रात गुज़र गयी ,
ऐसे हुयी विहान रे !
ऐसे मे कोयलिया रह – रह , हिय की आग बढ़ाए
सखि री ! फागुन के दिन आए !
अबकी फागुन कैसे बीते ?
सोच – सोच अलसाए नैना
पिछली बातें याद आ रही –
बड़ी हुयी बिरहन की रैना !
नस – नस मे सिहरन जागे सखि ! बैरन नींद ना आए
सखि री ! फागुन के दिन आए !
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------ मौलिक और अप्रकाशित ------
Comment
भाई बृजेशजी के सुझावों पर ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है, आदरणीय. सर्वोपरि, किसी रचनाकार को रचना का उद्येश्य और लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिये. वैसे, आपका सतत प्रयास श्लाघनीय है. व्याकरण के हिसाब से भी सचेत रहने की आवश्कता है.
सादर
भावपूर्ण रचना! प्रथम इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
आज आपकी इस रचना के कुछ बिंदुओं पर चर्चा करना चाहता हूँ. इन बिन्दुओं पर आपकी और सुधीजनों की प्रतिक्रिया वांछित है.
मेरे विचार से किसी भी रचना के लिए भाषा का चयन बहुत सावधानी से करना चाहिए. इस रचना के कथ्य के अनुरूप आपने जिस तरह की भाषा का चयन किया है, वह उचित है. लेकिन रचना की शुरुआत में ‘ठगि-ठगि’ जैसा शब्द पूरी रचना की भाषा से मुझे मेल खाता नहीं लगता. यदि इसे ‘ठग-ठग’ ही रहने दिया जाता तो क्या फर्क पड़ता?
//प्रिय जाने किस देश पड़े ?// ‘पड़े’ शब्द का प्रयोग यहाँ उचित नहीं है. ‘पड़े’ के माध्यम से जिस भाव को व्यक्त करने कि कोशिश हुई है उस भाव की व्यंजना नहीं हो पा रही है. मुझे लगता है कि यह शब्द ‘निर्जीव’ वस्तुओं के लिये प्रयुक्त होता है.
//फूली सरसों और पगडंडी –
आज दिखे सुनसान रे!//.............यह कैसा combination है? क्या सरसों और पगडण्डी दोनों सूनसान दिख रही हैं? सही शब्द ‘सूनसान’ होता है. मेरे विचार से आप कहना चाहते थे कि //सरसों फूली पर पगडण्डी सूनसान रे//
अपने जिस प्रवाह में रचना शुरू की, वह आगे जाकर बिखर गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने रचना को पूरा समय नहीं दिया, ऐसा मुझे लगता है.
ये मेरे निजी विचार हैं, इनसे किसी अन्य का सहमत होना आवश्यक नहीं.
सादर!
फाल्गुन में प्रिय के विरह को बहुत सुंदर भाव मिले रचना में, हार्दिक बधाई आदरणीय ब्रह्मचारी जी
सुंदर रचना , आदरणीय ब्रांहचारी जी बधाई ।
बहुत खूब आदरणीय
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